इस गर्मी चिड़ियों को मिलेगा दाना-पानी 

Divendra SinghDivendra Singh   14 April 2017 7:02 PM GMT

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इस गर्मी  चिड़ियों को मिलेगा दाना-पानी चिड़ियाघर में अभियान की शुरुआत की गयी।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। गर्मियों में तापमान बढ़ने के साथ ही चिड़ियों के पानी की समस्या बढ़ जाती है, हर वर्ष लाखों चिड़िया पानी की कमी से मर जाती हैं। ऐसे में चिड़िया को दाना पानी उपलब्ध कराने के लिए वाटर टू कैम्पेनिंग हर घर आशियाना अभियान चलाया जा रहा है।

चिड़ियाघर में वाटर पाट्स में पानी भरते।

आज लखनऊ चिड़ियाघर में गैर सरकारी संस्था अर्थ फाउंडेशन और हमराह फाउंडेशन ने चिड़ियाघर में इस अभियान की शुरुआत की। अभियान का शुभारंभ चिड़िया घर के निदेशक अनुपम गुप्ता और पियूष श्रीवास्तव ने वाटर पॉट्स लगा कर किया।

ये अभियान जुलाई तक चलेगा, जिसमें स्कूल, कालेज, पार्क, सरकारी कार्यालय, प्राइमरी विद्यालय, पेड़ों पर मिट्टी के बर्तन लगाए जाएंगे, जिसमें चिड़ियों के लिए दाना-पानी रखा जाएगा। इस अभियान के माध्यम से स्कूलों एव सार्वजनिक स्थानों पर पक्षी जागरूकता का भी किया जाएगा।

चिड़ियाघर में किया गया अभियान की शुरुआत।

संस्था के अध्यक्ष विमलेश निगम ने कहा, "इस बार चिलचिलाती धूप के तपिश भरे मौसम में पारा बहुत ज्यादा बढ़ने का अनुमान है। पेड़ो की लगातार होती कमी और लगातार सूखते जल स्रोतों की वजह से गौरैया व अन्य पक्षियों को आश्रय व दाना पानी की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ता है। जिस प्रकार हमे इस गर्मी में पंखे, कूलर व ठंडे पानी की आवश्यकता होती है। उस प्रकार उन्हें भी दाना पानी व छाया की जरुरत पड़ती है।"

साल 2012 में गो ग्रीन सेव अर्थ फाउंडेशन ने गर्मी के मौसम में गौरैया व लाखों अन्य पक्षियो के संरक्षण के लिए दाना-पानी आदि की व्यवस्था के लिए अभियान को सोशल मीडिया पर चलाया था। जिससे काफी लोगों ने जुड़ कर अभियान को सफल बनाया था। आज ये अभियान संस्था द्वारा उत्तर प्रदेश, दिल्ली प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार में चलाया जा रहा है।

लोगों को वाटर पाट देते विमलेश।

विमलेश ने आगे कहा, "भारत जैसे देश में बहुतायत में पायी जाने वाली गौरैया की संख्या में 80 से 90 कमी आयी है। लगातार पेड़ों की कटाई, बढ़ता शहरीकरण, प्रदूषण, बिजली के तार व खेतों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग से घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं। टावरों से निकलने वाली रेडिएशन किरणों से भी गौरैया जैसी चिड़ियों की दिशासूचक प्रणाली व प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रहा है, जिसके परिणाम स्वरुप गौरैया व अन्य पंक्षियों की संख्या लगातार घट रही है।"

    

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