असुरक्षा के डर से नहीं पढ़ पा रहीं गाँव की लड़कियां

Neetu SinghNeetu Singh   6 April 2017 6:53 PM GMT

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असुरक्षा के डर से नहीं पढ़ पा रहीं गाँव की लड़कियांआवासीय स्कूलों में आठवीं तक ही होती है पढाई।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बहराइच। गाँव की लड़कियां पढ़ना तो चाहती हैं, लेकिन इनके मां-बाप असुरक्षा के डर से स्कूल भेजने की बजाय उनका विवाह कर देते हैं। पांचवी और आठवीं के बाद यहां की बहुत कम लड़कियों को ही स्कूल की शक्ल देखने को मिलती है।

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“मेरी मम्मी कहती हैं बड़ी हो गयी हो आठवीं के बाद हम तुम्हें नहीं पढ़ाएंगे, गाँव से पांच किलोमीटर दूर स्कूल है, लोग क्या कहेंगे फलाने की बिटिया पढ़ने जा रही है।” ये कहना है नकही गाँव की रहने वाली किरण पाठक (15 वर्ष) का।

किरण उदास मन से कहती हैं, “पापा कहते हैं पढ़-लिखकर कौन सा नौकरी करोगी, करना तो घर में चूल्हा-चौका ही है, कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं बचेंगे।”बहराइच जिले में ये सिर्फ किरण के पापा ही नहीं सोचते हैं बल्कि सुरक्षा के डर से हर माता-पिता अपनी बेटियों को शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरत से वंचित रखने को मजबूर हैं। बौड़ी गाँव के सिपाहीलाल (55 वर्ष) बताते हैं, “गाँव में आये दिन छेड़खानी की घटनाएं होती रहती हैं।

नई सरकार ने भले ही छेड़छाड़ करने वालों पर नकेल कसने के लिए एंटी रोमियो दल को सक्रिय कर दिया हो लेकिन हमारे गाँव में अभी भी बेटियां घर से बाहर निकलने में महफूज नहीं हैं।” अलीनगर गाँव में रहने वाली सातवीं कक्षा की पप्पी बानो आगे पढ़ना चाहती हैं पर उसे अच्छे से पता है उसके मां-बाप आठवीं के बाद उसकी पढ़ाई बंद करवाकर उसकी शादी करा देंगे।

पप्पी बानो का कहना है, “हमारे घर वालों ने बड़ी दीदी को सिर्फ पांचवीं तक ही पढ़ने दिया था, अगर हमें भी कस्तूरबा स्कूल न मिलता तो हम न पढ़ पाते, अगर हॉस्टल होगा तो घर वाले पढ़ा भी देंगे, गाँव से दूर वो स्कूल कभी नहीं भेजेंगे।” वो आगे कहती हैं, “हम भी पढ़ना चाहते हैं, नौकरी करना चाहते हैं ।”

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