स्त्री के स्वाभिमान की कहानी है अनारकली ऑफ़ आरा

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स्त्री के स्वाभिमान की कहानी है अनारकली ऑफ़ आरापेशे से पत्रकार रहे अविनाश दास की बहुचर्चित फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा 24 मार्च को रिलीज हो रही है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

पेशे से पत्रकार रहे अविनाश दास की बहुचर्चित फिल्म अनारकली ऑफ़ आरा अगले महीने 24 मार्च को रिलीज हो रही है। अपने नाम को लेकर ये फिल्म काफी चर्चा में है, ऐसे में देखना ये है कि फिल्म के निर्देशक अविनाश दास बिहार के आरा जिले को फिल्म में कितना दिखा पाते हैं।

फिल्म में अभिनेत्री स्वरा भास्कर के साथ ही संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी भी मुख्य भूमिका में हैं। अपनी पहली फिल्म के सम्बंध में निर्देशक अविनाश दास से बसंत कुमार की बातचीत-

कहानियों का अपना जो कैनवास है, वह छोटे स्तर का है। एक बड़े टारगेट ऑडियंस के लिए मुझे लगा कि एक नए प्लेटफॉर्म की तलाश करनी चाहिए। सिनेमा में मेरी ज्यादा दिलचस्पी थी तो यही कोशिश की।
अविनाश दास, निर्देशक

सवाल: पत्रकार से फ़िल्मकार बनने के सफर के बारे में बताइए?

उत्तर: मीडिया में रहते हुए मैं दुनिया को और समाज को अपनी तरह से देखने की कोशिश की, लेकिन वो सब करते हुए मुझे लगा कि हम जो कहानियां चुनकर लाते हैं, अख़बार के लिए या टीवी के लिए उन कहानियों का असर एक-दो दिन तक ही होता है।

कहानियों का अपना जो कैनवास है, वह छोटे स्तर का है। एक बड़े टारगेट ऑडियंस के लिए मुझे लगा कि एक नए प्लेटफॉर्म की तलाश करनी चाहिए। सिनेमा में मेरी ज्यादा दिलचस्पी थी तो यही कोशिश की। मैं बचपन से फिल्मी दुनिया में आना चाहता था। थोड़ी देर हो गई, क्योंकि अलग तरह के जीवन संघर्ष थे। हर तरह की यात्रा एक संघर्ष ही होती है। फिल्म बनाने के बारे सोचना और फिल्म बनाने की कोशिश करना और फिल्म बना लेना यह एक प्रक्रिया है, यात्रा है। और कोई संसार बना बनाया नहीं होता। यह संसार भी। इसे भी एक दिन छोड़ कर जाना होता है।

सवाल: इस फिल्म का आरा से क्या सम्बन्ध है?

उत्तर: यह फिल्म आरा शहर की कहानी है। आमतौर पर लोग बड़े शहरों की कहानियां कहते रहे हैं लेकिन मैंने बहुत छोटे शहर की कहानी कही है। यह एक स्ट्रीट सिंगर की कहानी है, जो अपने आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ती है। साल 2006 या 07 में मैंने यूट्यूब पर ताराबानो फ़ैज़ाबादी का एक गाना सुना था, ‘हरे-हरे नेबुआ कसम से गोल गोल’ इस म्यूज़िक वीडियो में कुछ सेकेंड के लिए ताराबानो का फुटेज़ है।

उसमें उनके चेहरे के सपाट भाव ने मुझे एक स्ट्रीट सिंगर की कहानी कहने के लिए प्रेरित किया। मैं यूपी के एक सिंगर से इंस्पायर्ड हुआ था लेकिन चूंकि यूपी की ज़ुबान पर मेरी पकड़ नहीं थी इसलिए मैंने बिहार के आरा शहर का चयन किया। आरा से मेरी अच्छी वक़फियत रही है।

सवाल: अनारकली के रूप में स्वरा भास्कर ही क्यों?

उत्तर: मुझे लगता है कि स्वरा के अलावा इस किरदार से न्याय कोई कर नहीं सकता था। स्वरा फिल्मों से अलग जमीनी तौर सड़क-चौराहे पर मुद्दों पर लड़ती रही हैं। हमारी फिल्म में भी कुछ-कुछ वैसा ही किरदार था, तो मुझे लगा कि स्वरा से बेहतर कोई हो नहीं सकता है। जब मैंने स्वरा को कहानी सुनाई थी तो उन्होंने एक मिनट भी देरी नहीं की हां कहने में।

सवाल: दर्शक यह फिल्म क्यों देखे?

उत्तर: क्योंकि यह स्त्री अस्मिता की कड़ी में आने वाली एक अहम फिल्म है। समाज के तथाकथित फूहड़ पायदान पर दिखने वाली एक स्त्री के स्वाभिमान की कहानी है, इसलिए इसे ज़रूर देखना चाहिए। एक बाईजी के बहाने यह फिल्म हर स्त्री की कहानी है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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