जैविक खाद बेचकर आत्मनिर्भर बनीं महिलाएं

Neetu SinghNeetu Singh   10 May 2017 10:00 AM GMT

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जैविक खाद बेचकर आत्मनिर्भर बनीं महिलाएंजैविक खाद से महिलाओं को मिला रोजगार।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

जौनपुर। “जब गोबर की जैविक खाद बनानी शुरू की थी तब ये सोचा नहीं था कि इस खाद को लखनऊ महोत्सव में भी कोई खरीदेगा, तीन महीने में तैयार गड्ढे वाली खाद हम जबसे अपने खेत में डालने लगे हैं तबसे रासायनिक खाद का प्रयोग बहुत कम मात्रा में करने लगे हैं ।” ये कहना है जौनपुर जिले की रहने वाली लालती देवी (62 वर्ष) का।

जौनपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर मुगरबादशाहपुर ब्लॉक कैथापुर गाँव की रहने वाली लालती देवी कई वर्षों से जैविक खाद बनाकर लखनऊ महोत्सव में बेचने ले आती है। इस ब्लॉक के आस-पास के कई गाँव की महिलाएं गड्ढा खोदकर तीन महीने के लिए गोबर की खाद ढककर रख देती हैं, तीन महीने बाद यही खाद अपने खेतों में डालती हैं।

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गाँव की लालती देवी का कहना है, “पहले जब गोबर की खाद खेत में डालते थे तो उसका कम असर समझ में आता था लेकिन जब से गड्ढा खोदकर खाद बनाने लगे तब से बाजार की खाद बहुत कम डालते हैं।” वो आगे बताती हैं, “जैविक खाद डालने से हमारे खेत की लागत बहुत कम हो गयी, साल में जब एक बार महोत्सव में ये खाद बेचने जाते हैं तो पैसा भी कमा लेते हैं जिससे कई खर्चे चला लेते हैं।”

मुगराबादशाहपुर ब्लॉक के नरायणी गाँव की रहने वाली शारदा देवी (55 वर्ष) बताती हैं, “खेत के कोने में एक गड्ढा खोद लेते हैं, जिसमें गोबर से लेकर नीम की पत्ती, सब्जी के छिलके, जितना भी कूड़ा-करकट होता है उसे गोबर के साथ ही इस गड्ढे में डालते रहते हैं, प्लास्टिक की कोई भी चीज गढ्ढे में न जाए इस बात का ध्यान रखते हैं।”

हमारे यहां सब्जियों की खेती ज्यादा होती है, जैविक खाद डालने से सब्जियों की खुशबू बनाते समय बहुत अच्छी आती है, जो खुशबू वर्षों से गायब हो गयी थी अब वो वापस आ गयी है।
रीता देवी, ग्रामीण महिला

वो आगे बताती हैं, “जब गड्ढा पूरा भर जाता है तो उसे मिट्टी का लेप करके पूरा बंद कर देते हैं, तीन महीने बाद गड्ढे की खाद आपस में पानी छिड़ककर मिला देते हैं, शाम के समय ही ये खाद खेत में डालते हैं सूरज निकलने से पहले ही खेत की जुताई करा देते हैं।”

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जैविक खाद सही ढंग से बनाने और खेत में डालने तक की प्रक्रिया आसपास की ग्रामीण महिलाएं अच्छे से जानती हैं। इन महिलाओं की निर्भरता खाद को लेकर बाजार पर बहुत हो गयी है, लागत बचने के साथ ही ये रासायनिक खादों का इस्तेमाल भी नाम मात्र ही कर रही हैं। इन महिलाओं ने जैविक खाद बनाना महिला समाख्या के प्रशिक्षण में सीखा।

रीता देवी (57 वर्ष) का कहना है, “हमारे यहां सब्जियों की खेती ज्यादा होती है, जैविक खाद डालने से सब्जियों की खुशबू बनाते समय बहुत अच्छी आती है, जो खुशबू वर्षों से गायब हो गयी थी अब वो वापस आ गयी है।”

लखनऊ महोत्सव खत्म होने के बाद भी कई लोग महिला समाख्या से संपर्क करके ये खाद अपने घर में लगे पौधों के लिए मांगते रहते हैं। लोगों की मांग के बाद महिलाएं पैकेट में बंद करके ये खाद उन्हें पहुंचा देती हैं।

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