पति को चिट्ठी लिखने की चाहत ने बदल दी ज़िन्दगी, जानिए कैसे
Neetu Singh 22 May 2017 9:36 AM GMT
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
सहारनपुर। “बचपन में ही शादी हो गई थी, स्कूल कभी गई नहीं, पति टीचर थे। उनकी पोस्टिंग उत्तरकाशी में हुई थी। हमारे जमाने में फ़ोन नहीं था। पति को चिट्ठी लिखनी थी, कई महीने ककहरा याद किया, एक-एक शब्द जोड़कर पूरे एक महीने में पति को पहली चिट्ठी लिखी थी।” ये बताते हुए सहारनपुर जिले के फतेहपुर गाँव की मालवती देवी (56 वर्ष) भावुक हो जाती हैं।
सहारनपुर जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर नागल ब्लॉक से पूरब दिशा में फतेहपुर गाँव है। कभी स्कूल न गई इस गाँव में रहने वाली मालवती ने जब ये ठान लिया कि उसे पढ़ना है, तभी वो अपने बच्चों को पढ़ा पाएंगी तो उन्होंने उम्र की परवाह न करते हुए महिला साक्षरता केंद्र में जाकर न सिर्फ पढ़ाई की बल्कि आठवीं की परीक्षा भी पास की। आज पूरे गाँव की आशाबहू हैं और मिड-डे मील का संचालन भी कर रही हैं। हर किसी को शिक्षा के लिए जागरूक भी कर रही हैं। क्षेत्र के लोग अपने बच्चों को इनका उदाहरण देने लगे हैं।
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मालवती देवी को शादी के बाद पढ़ाई की जरूरत क्यों लगी, इस बारे में अपना अनुभव साझा करते हुए वह बताती हैं, “जब मैं 12 वर्ष की थी तभी शादी हो गई। पति शादी के बाद ही नौकरी पर चले गए। ससुराल में घर से बहार निकलने की आजादी नहीं थी, एक बार पति को चिट्ठी लिखने की सोची, पड़ोस के एक लड़के को बुलाया उसने कहा आप बोलिए मैं लिख दूं, तब पहली बार मुझे लगा कि मुझे अपनी बातें इस लड़के को बतानी होंगी तब ये लिखेगा। हमारी चुपचाप की बातें सबको पता चल जाएंगी।” मालवती को पहली बार एहसास हुआ कि शिक्षा कितनी जरूरी है। उस दिन लड़के से चिट्ठी नहीं लिखवाई और यहीं से उन्होंने ठान लिया था कुछ भी हो जाए खुद लिखना-पढ़ना सीखकर अपने पति को चिट्ठी लिखेंगी।
महिला समाख्या ने महिलाओं को साक्षर करने के लिए महिला साक्षरता केंद्र की नींव रखी। इन केंद्रों पर घर में रहने वाली महिलाएं पढ़ने आती हैं, जिनकी उम्र की कोई सीमा नहीं, पढ़ी-लिखी महिलाएं ही पढ़ाती हैं। इसलिए महिलाओं को पढ़ने में कोई झिझक नहीं होती। महिला समाख्या की राज्य परियोजना निदेशक डॉ. स्मृति सिंह बताती हैं, “जो महिलाएं यहां पढ़ने आती हैं, उन सबकी अपनी अलग-अलग रोचक कहानियां हैं, जिससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।”
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‘जीवनसाथी शब्द लिखने में लग गए थे कई दिन’
मालवती ने अपनी पहली चिट्ठी कितने दिनों में लिखी इसका अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “एक-एक अक्षर जोड़कर रोज लिखते थे। पूरे एक महीने में एक चिट्ठी एक पन्ने की लिख पायी थी, ‘जीवनसाथी’ शब्द लिखने में ही कई दिन लग गए थे।” मालवती ने तीन बच्चों के जन्म के बाद आठवीं की परीक्षा दी। मालवती खुश होकर बताती हैं, “हमने अपने बच्चों को इतना पढ़ाया कि आज हमारी दो बेटियां बेटा और बहू सब सरकारी टीचर हैं। गाँव की आशाबहू बन गई हूं। 12 साल से जब घर-घर जाती हूं तो सबसे बस यही कहती हूं कि चाहे नमक-रोटी खाना पर अपने बच्चों को जरूर पढ़ाना।”
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