स्त्रीवाद के नाम पर ख़ुद अपनी ब्रांडिंग!

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स्त्रीवाद के नाम पर ख़ुद अपनी ब्रांडिंग!गाँव कनेक्शन

पिछले दिनों बॉलीवुड एक्ट्रेस कल्कि कोचलिन का एक वीडियो अच्छी खासी सुर्खियां बटोरता नज़र आया। इस वीडियो में कल्कि बढ़ते हुए महिला अपराधों के प्रति समाज और मीडिया के रवैये पर आपत्ति जताती हुई नज़र आ रही हैं। ‘प्रिंटिग मशीन: अनब्लश्ड’ नाम के इस वीडियो में वो बहुत मनोरंजनात्मक तरीके से अपनी ही लिखी एक अंग्रेज़ी कविता पढ़ रही हैं। रिलीज़ होने के तुरंत बाद ही ये सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। हज़ारों लोगों ने इस वीडियो को धड़ल्ले से शेयर किया।

अपनी बेहद क्रांतिकारी कविता में कल्कि ने महिलाओं के साथ बढ़ रही हिंसक वारदातों और उन वारदातों को मीडिया द्वारा पेश किए जाने के तरीकों पर व्यंग कसती नज़र आ रही हैं। इस स्त्रीवाद से ओतप्रोत कविता की वजह से कल्कि की खूब तारीफें भी हुई। सोशल मीडिया में लोगों ने कल्कि की इस कोशिश को खूब सराहा। कई ‘फेसबुक स्त्रीवादियों’ (जो स्त्रीवाद का प्रचार-प्रसार महज़ फेसबुक के स्टेटस से करना चाहते/चाहती हैं), को एक दो स्टेटस लिखने का अच्छा ख़ासा मसाला मिल गया। हालांकि ये पहली बार नहीं है जब कल्कि ऐसी किसी कविता के साथ सामने आई हों। दो साल पहले भी उन्होंने एक मीडिया संस्थान के बड़े कार्यक्रम में मोनो एक्टिंग परफॉर्मेंस देते हुए महिलाओं से जुड़ी एक कविता पेश की थी। इसके अलावा भी, समय-समय पर कल्कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर ट्वीट करती रहती हैं।

ये तो रही हम सबके सामने रखी गई कल्कि की वो छवि, जिसमें वो हमें मज़बूत, इन्टेलैक्चुअल, टैलेंटिड एक्ट्रेस और फेमिनिस्ट नज़र आती हैं। आइये अब कल्कि नाम के इस सिक्के के दूसरे पहलु पर भी एक निगाह डाल लें। अगर आप टेलिविज़न देखते हैं तो आपने कई बार कल्कि को एक विज्ञापन में देखा होगा, जिसमें वो एक ब्यूटी क्रीम को एंडॉर्स कर रही हैं। इस काफी महंगी ब्यूटी क्रीम के विज्ञापन में कल्कि महिलाओं के कम उम्र दिखने की ज़रूरत को ग्लोरीफाई करती नज़र आ रही हैं। विज्ञापन से यही संदेश निकलकर लोगों तक पहुंच रहा है कि महिलाएं अगर अपनी त्वचा का ज्यादा ध्यान नहीं रख पाती, उनके पास वक्त की कमी है तो उन्हें इस महंगी क्रीम को लगाना चाहिए, क्योंकि अच्छा दिखने से अच्छा महसूस होता है। ज़ाहिर है, मीडिया के एक मज़बूत माध्यम विज्ञापन के ज़रिये इस तरह का संदेश फैलाने के लिए कल्कि को अच्छी ख़ासी रकम भी मिली ही होगी। अब सवाल ये उठता है कि जब वो खुद मीडिया के एक अन्य माध्यम से महिलाओं के एक ऐसे विचार को उछाल रही हैं जो स्त्रीवाद के विरूद्ध है (महिलाओं को उनकी सुंदरता से आंका जाना), तो कैसे वो मीडिया के दूसरे माध्यम यानी सोशल मीडिया के ज़रिये डंके की चोट पर दूसरा ही राग आलाप सकती हैं? अगर वो पैसे कमाने के लिए स्त्रीवादी विचारों के विरूद्ध किसी विज्ञापन को कर सकती हैं, तो वो दूसरों पर सवाल कैसे उठा सकती हैं? सच तो ये है कि अपने ताज़ा वीडियो में वो मीडिया पर जो इल्ज़ाम लगाती नज़र आ रही हैं, दरअसल वो खुद भी उन इल्ज़ामों का हिस्सा हैं।

11  जनवरी को रिलीज़ हुए इस वीडियो को 31 जनवरी तक यूट्यूब पर तकरीबन 1,112,237 बार देखा जा चुका है। इससे ये तो साफ ज़ाहिर है कि कल्कि को लोग सुनते-देखते हैं। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उनके ब्यूटी क्रीम के विज्ञापन को कितनी बार देखा-सुना गया होगा, ख़ासतौर पर तब जब वो विज्ञापन टीवी पर आता है, जिसकी पहुंच कहीं ज़्यादा है। असल में, कल्कि ने अपने कविता वाले वीडियो से स्त्रीवादी के रूप में अपनी ब्रांडिंग ही की है। जहां ये वीडियो भारत में महिलाओं की हालिया स्थिति को लेकर कल्कि की चिंता को बयां करता है, वहीं ब्यूटी क्रीम का उनका विज्ञापन उनकी इस चिंता पर सवालिया निशान लगाता है। बहरहाल, इस वीडियो को करते हुए कल्कि की नीयत असल में क्या रही होगी, ये तो वही जानती हैं, लेकिन ये स्पष्ट है कि अगर वो इसी तरीके के दोहरे विचारों को प्रचार करती रहीं, तो कम से कम इससे भारतीय महिलाओं को कोई फायदा नहीं पहुंचने वाला।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं)

 

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