सूखा प्रभावित क्षेत्र में युवाओं के हुनर को निखारने की कोशिश

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बांदा। बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त इलाके के युवाओं के कौशल को निखारने के लिए पिछले नौ वर्षों से रानी दमेले (अंजू) एक छत के नीचे स्वरोजगार परक प्रशिक्षण केन्द्र चला रहीं हैं। उन्होंने अब तक हजारों छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण दिया है।

बांदा जिला मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दूर महेश्वरी देवी मंदिर के पास रहने वाली अंजली दमेले (45 वर्ष) ने 2008 में श्रेया-आकष संस्थान को खोला था। रानी दमेले (अंजू) बताती हैं, “सूखे की वजह से बुंदेलखंड की छवि काफी खराब है यहां के युवा अच्छा कर सकें, इस उद्देश्य से संस्थान की शुरूआत की थी। शुरू में 12 ही कोर्स थे और 24 कोर्स सिखा रहे हैं।” 

सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक संस्थान में 150 छात्र-छात्राएं अलग-अलग प्रशिक्षण ले रहे हैं। कोर्स के बारे में जानकारी देते हुए रानी दमेले (अंजू) बताती हैं, “जो कोर्स बच्चे सीख रहे हैं उसमें उन्हें पांरगत हासिल हो इसके लिए टीचर्स की भी व्यवस्था कर रखी है।” ढोलक, हारमोनियम, एंकिरंग, गिटार आदि कई कोर्सों को सिखाने के लिए संस्थान में 20 टीचर्स है।

रानी जहां स्वरोजगार परक प्रशिक्षण देकर शहर के युवाओं को आगे बढ़ा रही है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर भी सिखा रही हैं। रानी बताती हैं, “गाँव की लड़कियां अपनी रक्षा के लिए किसी का सहारा न लें और खुद सक्षम बनें इसके गाँव-गाँव में निशुल्क मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। इसके साथ-साथ यह ट्रेनिंग शहरों में भी चल रही है।” अभी तक चार हजार लड़कियां मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ले चुकी हैं। 

संस्थान से संगीत में पारंगत हासिल कर चुकी दीक्षा गुप्ता बताती हैं, “छोटे शहर में संगीत की शिक्षा मिली जिसकी वजह से भातखंडे संस्थान में ठुमरी विधा को सिख रही हूं।” 

रानी दमेले को इस काम को करने के लिए कई बार पुरस्कार भी दिया जा चुका है। अपनी बात को जारी रखते हुए रानी बताती हैं, “लड़कियों को मार्शल आर्ट सिखाने के लिए सरकार की तरफ से महिला सुरक्षा और शिक्षा सम्मान दिया गया था इसके अलावा भी कई पुरस्कार मुझे मिल चुके हैं।” 

वो आगे कहती हैं, “जल्द ही हम बुंदेलखंड की लोककला और लोकगीतों का भी प्रशिक्षण देना शुरू करेंगे ताकि यहां की कलाओं को लोग जानें।”

 

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