दिव्यांग बेटी के लिए मां ने पाई-पाई जोड़ बनवाया शौचालय

Manish MishraManish Mishra   28 Dec 2018 5:30 AM GMT

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परसपुर चौबे (सोनभद्र)। किसी मां के लिए शायद इससे बड़ा दु:ख कुछ नहीं होगा कि उसकी बेटी घिसट-घिसट के चलती हो और उसे हर काम के लिए किसी और का सहारा लेना पड़ता हो। शौच के लिए भी उसे अपने मां के कंधे पर बैठ कर खेतों में जाना पड़ता हो। अपनी बेटी के इस दु:ख को देखते हुए उस मां ने एक नजीर पेश की जो अपने आप में मिसाल है।

सोनभद्र के एक छोटे से गाँव परसपुरचौबे निवासी शैलकुमारी अपनी बेटी किरन के साथ रहती हैं। उनकी बेटी दिव्यांग है, वो चल फिर नहीं सकती। किसी तरह से घिसट-घिसट कर थोड़ा बहुत चलती है।

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शैलकुमारी बताती हैं, "मेरी बेटी बचपन से ही चल फिर नहीं सकती। वह छोटी थी तब उसे आसानी से उठा के शौच के लिए खेतों में ले जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे जब वह बड़ी होने लगी तब उसे कंधे पर उठा कर खेतों में ले जाना मेरे लिए मुश्किल होता गया। उसी समय मैंने अपनी बेटी के लिए घर में शौचालय बनवाने कि बात सोची।"

स्वच्छ भारत के आंकड़ों के अनुसार, देश के 530 जिले खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। वहीं उत्तर प्रदेश का कुल 99.86 फीसदी क्षेत्र खुले में शौच से मुक्त है। आंकड़ों के अनुसार सोनभद्र शत-प्रतिशत खुले में शौच से मुक्त हो गया है।

बेटी की बढ़ती उम्र एक मां को उसका घर बसाने के लिए चिंतित करती है, लेकिन शैल कुमारी को हर वक्त अपनी बेटी के लिए शौचालय बनवाने की चिंता रहती। शैलकुमारी का अपनी बेटी के लिए शौचालय बनवाने का प्रयास ठीक वैसा ही था, जैसे किसी दिव्यांग का माउंट ऐवरेस्ट की चढ़ाई करना।

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शैलकुमारी गाँव के ही एक सरकारी विद्यालय में रसोइया का काम करती हैं। यहां उन्हें महीने के 900 रुपए मिलते हैं। इतने कम पैसे में शौचालय बनवाना बहुत ही कठिन बात थी। शैलकुमारी बताती हैं, "मेरे पति ने दो शादियां कर रखी हैं। वह हमारे साथ नहीं रहते। इसलिए बेटी की सारी जिम्मेदारी मैं अकेले उठाती हूं। मैंने अपने पति से शौचालय बनवाने कि बात कही तो उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया। मैं हिम्मत नहीं हारी और सोच लिया कि अगर मुझे भीख मांग कर भी शौचालय बनवाना पड़ा तो भी मैं बनवाऊंगी।"

"गाँव के लोगों ने कुछ पैसे देकर मेरी मदद की। फिर भी उतने पैसे नहीं जुट पाए कि उससे शौचालय बन पाए। शौचालय बनने के बीच में कई बार काम रुका भी। इस तरह से शौचालय बनवाने में पूरे तीन साल लग गए। शौचालय बन तो गया है, लेकिन अब भी उसमें दरवाजा लगाना बाकी है।" शैलकुमारी ने आगे बताया।

अब किरन को नहीं होती कोई परेशानी

शैलकुमारी ने बताया, "शौचालय जिस दिन बन कर तैयार हुआ उस दिन मुझे लगा कि अब मैं अपने काम करने घर से बाहर जा सकती हूं। अब किरन मेरे बिना जब भी शौच के लिए जाना चाहे जा सकती है और उसे कोई परेशानी भी नहीं होगी।" अगर हर मां शैलकुमारी की तरह यह सोच ले कि वह अपने बेटी को खुले में शौच के लिए नहीं जाने देगी तो स्वच्छ भारत मिशन का सपना जल्द ही पूरा हो जाएगा।

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