घर से लेकर खेत तक बंदरों का आतंक, लोग बोले- कराई जाए नसबंदी 

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घर से लेकर खेत तक बंदरों का आतंक, लोग बोले- कराई जाए नसबंदी गेहूं की फसल में बंदर। फोटो: अभिषेक वर्मा

अजय कश्यप, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

बाराबंकी। बंदरों ने प्रदेश के कई जिलों में लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। आए दिन किसी न किसी इलाके से बंदरों के उत्पात और काटने की खबर आती हैं। गांव कनेक्शन लगातार इस मुद्दे को उठाता रहा है। बंदरों के आतंक से परेशान लोगों ने इनकी बढ़ती आबादी पर काबू पाने के लिए नसबंदी कराए जाने की मांग की है।

इसी हफ्ते बेलहरा के बंदरों के झुंड ने एक स्कूल में उत्पात मचाया और एक छात्रा को घायल कर दिया। पिछले हफ्ते रायबरेली जिले में बंदर के डर से एक बच्चा दोमंजिला मकान से कूद गया था, लखनऊ के ट्रामा सेंटर में उसका इलाज चल रहा है। तो कई जगह लोग बंदरों के डर से खेती छोड़ रहे हैं।

सुमेरपुर में एक घर पर बैठे बंदर। फोटो- अजय कश्यप

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर रामसनेहीघाट के सुमेरगंज में बंदरों ने आसपास के कई गांवों के लोगों की नीद उड़ा दी है। बंदरों के झुंड जिस रास्ते पर बैठ जाते हैं रास्ता पर आवागमन रुक जाता है। यहां कई हादसे तो हो ही चुके हैं, कई किसान बारबार हो रहे नुकसान के चलते खेती नहीं करना चाहते। परेशान लोगों इऩकी आबादी पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं।

‘बंदरों की हो नसबंदी’

सुमेरगंज के राजेश सिंह (58 वर्ष) बताते हैं, "बंदरों के उत्पात से अधिकतर किसानों ने खेती करना छोड़ दी है। बंदरों की या तो नसबंदी की जाए या फिर उन्हें कहीं दूर जहां नजदीक आबादी न हो, वहां छोड़ा जाए। सरकार को बंदरों को लेकर संज्ञान लेना चाहिए।" लखनऊ में भी कई मामले सामने आ चुके हैं। बलरामपुर अस्पताल की ओपीडी में रोजाना दर्जनों मरीज बंदर काटे के पहुंचते हैं।

‘फसलों को पहुंचाते हैं नुकसान’

हरीश श्रीवास्तव (43 वर्ष) बताते हैँ, इन बंदरों के उपद्रव से परेशान होकर खेती करना ही बंद कर दिया है क्योंकि जो भी बोया जाता है उसे ये सब बर्बाद कर देते हैं। अगर खेतों में बच्चों के रहते बंदर आ गये ओर बच्चे वहां से भागे नहीं तो उन्हें काटने के लिए दौड़ा लेते। इसी सब से परेशान होकर खेती करना ही बंद कर दिया है। यहां तक ये बिजली के तार तोड़ देते हैं।" इसी गाँव के निवासी राम प्रकास तिवारी बताते हैं, " बंदरों का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि बच्चों का निकलना दूभर हो गया है। बंदर घरों की छत की रेलिंग को गिरा दिया हैं। मौका पाते ही अगर घर का दरवाजा खुला है तो खाने के लिए जो भी चीज है सब उठा ले जाते हैं। हजारों की तादात में ये बंदर लोगों में खौफ बना दिया है।" रामसनेही घाट के रहने वाले दिलीप कुमार (52 वर्ष) बताते हैं, "बंदरों व आवारां पशुओं ने नाक में दम कर रखा है। फसलें तो बर्बाद हो ही रही हैं यहां तक लोगों के जीवन पर भी आफत बनी हुई है। महंगाई ने किसानों की कमर तोड़ दी है। बंदरों के कारण उपजाऊ भूमि भी बंजर छोड़नी पड़ रही है।" रामसनेही घाट कस्बे के अखिलेश कश्यप (47 वर्ष) का कहना है, "कई लोग धार्मिक मान्यता के चलते इन्हें भगा नहीं पाते लेकिन लोग कब तक झेलेंगे। अब तो जान पर बन आई है। घर और खेत तक हर जगह नुकसान पहुंचा रहे हैं।”

      

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