कम बारिश ने उड़ाई मछली पालकों की नींद

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कम बारिश ने उड़ाई मछली पालकों की नींदmachli palak

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बाराबंकी। कई वर्षों से कम बारिश मछली पालकों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। इस वर्ष अच्छा मानसून होने की आस लगाए मछली पालकों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखने को मिल रही हैं। इस बार भी कम बारिश होने के कारण उनकी लागत बढ़ गई है। मछली पालन कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाले व्यवसायों में गिना जाता है।

अली आठ वर्षों से कर रहे मछली पालन

बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर उत्तर दिशा में सिधौर ब्लॉक के अकुरही गाँव में रहने वाले अली लगभग आठ वर्षों से मछली पालन कर रहे हैं। इनके तालाब में भारतीय प्रजाति रोहू और कतला है। हर बार एक बीघा तालाब में आठ से दस किलो के बीज डालते हैं, जिससे अली को आठ से दस कुंटल मछली मिल जाती है। इससे वह 30 से 40 हजार रुपए कमा लेते हैं।

तालाब में पानी बरकरार रखने के लिए अब मुश्किल

दरअसल, बारिश कम होने की वजह से अली अहमद (32 वर्ष) और उनके जैसे प्रदेश के सैकड़ों मछली पालकों को तालाब में पानी बरकरार रखने की जद्दोजहद से जूझना पड़ रहा है। अली ने लगभग पांच बीघा ज़मीन पर सात फुट गहरा तालाब बनाया है। इसमें वे पांच फुट तक पानी बरकरार रखते हैं। अली के अनुसार उन्हें वर्तमान में हर महीने में एक बार लगभग 10 घण्टे ट्यूबवेल चलाकर तालाब भरना पड़ता है, लेकिन यदि मॉनसून सामान्य रहता तो तालाब 5-6 घण्टों में ही भर जाता है।

बारिश न होने पर आया ज्यादा खर्चा

''बारिश होने पर तालाब में पानी भरने का कोई खर्चा नहीं आता है पर इस बार बारिश न होने पर ज्यादा खर्चा आया है क्योंकि तालाब में पानी देर तक नहीं बना रह पा रहा है", अली आगे बताते हैं ''डीजल इंजन से तालाब भरने में 150 रुपए प्रति घंटा का खर्चा आता है, घण्टे बढऩे से ये खर्च बढ़ता जाता है"। अकुरही गाँव के मोहम्मद जावेद (37 वर्ष) बताते हैं, ''बारिश के पानी पर हम निर्भर नहीं रहते हैं, तालाबों को सही समय पर भरना जरूरी होता है अगर तालाब में पानी नहीं होगा तो मछलियां मर भी सकती हैं और बदलते मौसम में बारिश का कोई भरोसा नहीं होता है पता नहीं कब हो।"

अधिकारियों की राय अलग

हालांकि अधिकारियों की मानें तो मछली पालकों को नुकसान होने की संभावना कम है। उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग के उपनिदेशक डॉ. नूरुल हक बताते हैं,''जो अभी बारिश हुई है उससे तालाबों में पर्याप्त मात्रा में पानी भर गया है। ज्यादातर मछली पालक अपने पास पूरी सुविधाएं रखते हैं जिससे उनको आर्थिक नुकसान न हो।" पिछले साल हुई कम बारिश के बारे में डॉ नूरुल बताते हैं,''पिछले साल बारिश न होने की वजह से मछली पालकों को सूखे की मार झेलनी पड़ी थी, जिससे उनको काफी नुकसान हुआ था। इस बार हम लोगों को यह आशा है कि मछली पालकों को नुकसान न हो और अभी पूरी उम्मीद है कि बारिश होगी।"

आंकड़ों की मानें तो

2014-15 में उत्तर प्रदेश में 4.92 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 11.50 लाख हेक्टेयर में मत्स्य उत्पादन का जलीय क्षेत्र है जिस पर लगभग 15 लाख मत्स्य पालक हैं, जिनमें से तीन लाख सक्रिय हैं। वर्ष 2014-15 में उत्तर प्रदेश में 4.92 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ था।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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