मोती की खेती में कम लागत में ज्यादा मुनाफा 

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मोती की खेती में कम लागत में ज्यादा मुनाफा moti 

लखनऊ। खेती तो सभी किसान करते हैं, लेकिन आजकल मोती की खेती चलन तेजी से बढ़ रहा है। कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफे का सौदा साबित हो रहा है। अभी तक उड़ीसा के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर (ओडीसा) में मोती की खेती का प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन अब प्रदेश में भी कई जगह पर इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

पुष्पाकर को देख और किसान भी रहे प्रेरित

चित्रकूट जिले के कर्वी के रहने वाले पुष्पाकर द्विवेदी (35 वर्ष) ने मोती की खेती की शुरुआत की है। पुष्पाकर द्विवेदी कहते हैं, "मैंने महाराष्ट्र के नागपुर में मोती की खेती प्रशिक्षण लिया है, मैंने छोटे स्तर पर खेती भी शुरु कर दी है, आजकल मोती की मांग बहुत बढ़ रही है। मुझे देखकर कई और भी लोग मोती की खेती शुरु करने जा रहे हैं।"

युवाओं को मिलेगा बेहतर रोजगार

किसानों के लिए काम करने वाली संस्था किसान हेल्पलाइन भी मोती पालन का प्रशिक्षण देती है। इस संस्था के प्रमुख डॉ. राधाकांत सिंह बताते हैं, "अभी तक किसानों को मोती की खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है, इसलिए हम प्रदेश में इसका प्रशिक्षण दे रहे हैं। इससे गाँव के युवाओं को बेहतर रोजगार मिलेगा।"

कैसे करते हैं खेती

मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है। कम से कम 10 गुणा 10 फीट या बड़े आकार के तालाब में मोतियों की खेती की जा सकती है। मोती संवर्धन के लिए 0.4 हेक्टेयर जैसे छोटे तालाब में अधिकतम 25000 सीप से मोती उत्पादन किया जा सकता है। खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हे खरीदा भी जा सकता है। इसके बाद प्रत्येक सीप में छोटी-सी शल्य क्रिया के बाद इसके भीतर चार से छह मिमी व्यास वाले साधारण या डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प आकृति आदि डाले जाते हैं। फिर सीप को बंद किया जाता है। इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को हटा लिया जाता है।

तालाब में डाल दिये जाते हैं सीप

अब इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बांस या बोतल के सहारे लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीप की दर से इनका पालन किया जा सकता है। अन्दर से निकलने वाला पदार्थ बीड के चारों ओर जमने लगता है जो अन्त में मोती का रूप लेता है। लगभग 8-10 माह बाद सीप को चीर कर मोती निकाल लिया जाता है।

कम लागत में ज्यादा मुनाफा

एक सीप लगभग 20 से 30 रुपए की आती है। बाजार में एक मिमी से 20 मिमी सीप के मोती का दाम करीब 300 रूपये से लेकर 1500 रूपये होता है। आजकल डिजायनर मोतियों को खासा पसन्द किया जा रहा है जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। भारतीय बाजार की अपेक्षा विदेशी बाजार में मोतियों का निर्यात कर काफी अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। सीप से मोती निकाल लेने के बाद सीप को भी बाजार में बेंचा जा सकता है। सीप द्वारा कई सजावटी सामान तैयार किये जाते है। सीपों से कन्नौज में इत्र का तेल निकालने का काम भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। जिससे सीप को भी स्थानीय बाजार में तत्काल बेचा जा सकता है। सीपों से नदीं और तालाबों के जल का शुद्धिकरण भी होता रहता है जिससे जल प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है।

कहां ले सकते हैं प्रशिक्षण

सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर (ओड़ीसा) में मोती की खेती का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह संस्थान ग्रामीण नवयुवकों, किसानों एवं छात्र-छात्राओँ को मोती उत्पादन पर तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करता है। किसान हेल्प भी किसानों और छात्र-छात्राओँ को मोती उत्पादन पर तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करता है। ये संस्था हापुड़ में प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है। चित्रकूट जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र, गनिवां में भी मोती की खेती का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नरेन्द्र सिंह बताते हैं, "ग्रामीण नवयुवक, किसान इसका प्रशिक्षण ले सकते हैं। हमने यहां पर सीपी पालन शुरु भी कर दिया है।"

   

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