आंगनबाड़ी केंद्रों पर लगा रहता है ताला, कहीं नहीं दिखते बच्चे

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आंगनबाड़ी केंद्रों पर लगा रहता है ताला, कहीं नहीं दिखते बच्चेरायबरेली जिले का हरदी आंगनबाड़ी केंद्र

तृप्ती अवस्थी- कम्युनिटी जर्नलिस्ट कक्षा-12

स्कूल- श्री गांधी विद्यालय इंटर कॉलेज

रायबरेली। प्रदेश के ज्यादातर आंगनबाड़ी केंद्र कागजों पर ही ज्यादा चलते नजर आते हैं। अच्छे खासे पंजीकरण के बावजूद आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चे नहीं दिखते हैं। रायबरेली जिले के हरदी आंगनबाड़ी केंद्र भी ऐसी ही हालत है, केंद्र की सहायिका ललितादेवी हर दिन पूरे गांव का दो बार चक्कर लगाती है लेकिन इसके बावजूद केंद्र सिर्फ 3-4 ही बच्चे आते हैं। जबकि केंद्र पर 17 बच्चों का पंजीकरण हुआ है। आंगनवाड़ी केंद्र बंद मिलने की बात पूछने पर सहायिका ललिता देवी ने बताया कि आज मीटिंग है, दीदी मीटिंग में गई हैं। वैसे तो कुल 17 बच्चे आते हैं पर आज सिर्फ तीन ही आए हैं।

रायबरेली जिले में कुल 2,833 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, जिनके सुचारू रूप से संचालन के लिए हर केन्द्र पर एक मुख्य कार्यकत्री और एक सहायिका तैनात की गई है। इनकी निगरानी के लिए सुपरवाइजर तैनात हैं। सुपरवाइजर को निर्देशित करने के लिए हर ब्लॉक में एक सीडीपीओ है और इस सम्पूर्ण कार्यक्रम की देख-रेख जिला कार्यक्रम अधिकारी करता है पर बावजूद इसके गाँवों में बने अधिकांश केंद्र या तो बंद मिलते हैं या जो खुले होते हैं, उसमें एक्का-दुक्का बच्चे आते हैं।

आंगनबाड़ी के ऊपर बहुत जिम्मेदारियां हैं पर इनके प्रति नकारात्मक नज़रिया रखा जाता है। गाँव में लोग अब खुद अपने बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर नहीं भेजना चाहते हैं। वो आगे बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति जो मजदूरी करके चार पैसे कमाने लगता है , वह अपने बच्चे को आंगनबाड़ी केंद्र पर न भेजकर प्राइवेट नर्सरी स्कूलों में भेजने लगता है। इस दिखावे की होड़ में केन्द्रों की उपेक्षा हो रही है।
मनोज कुमार, जिला कार्यक्रम अधिकारी- रायबरेली

महिला एवं बाल विकास विभाग के मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक आंगनबाड़ी केंद्रों की मदद से प्रदेश में कुल 821 विकास खण्डों के अंतर्गत आने वाले गाँवों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। इसके तहत सरकार एक लाख 53 हज़ार आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को बांटे जाने वाले पोषाहार पर प्रतिवर्ष 7000 करोड़ रुपए खर्च कर रही है पर इसके बावजूद केंद्र पर बच्चों की संख्या कम मिल रही है।

रायबरेली में खीरो ब्लॉक की प्रभारी सीडीपीओ नीलम चौधरी के अनुसार केवल खीरों ब्लॉक में ही 183 केन्द्र हैं, जो यहां की 60 ग्राम पंचायतों को कवर करते हैं। केन्द्रों की गतिविधियां बताते हुए नीलम कहती हैं, ‘‘क्षेत्रीय स्तर पर प्रत्येक माह एमपीआर मीटिंग होती है,जिसमें सभी कार्यकत्री प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी पड़ती है। हाल ही में केंद्रों के बंद रहने की समस्या ज़्यादा देखने को मिल रही है क्योंकि गाँवों में लोग अपने बच्चों को केंद्रों पर नहीं भेजना चाहते हैं।।''

आंगनबाड़ी केंद्रों के रोज़ाना ना खुलने की समस्या सिर्फ रायबरेली जिले में ही नहीं है बल्कि बाराबंकी जिले के लकौड़ा गाँव में भी आंगनबाड़ी केंद्र सुचारू ढंग से नहीं चल पा रहा है। गाँव की आंगनबाड़ी कार्यकत्री महीने में एक बार ही आती हैं और वो भी बहुत कम समय के लिए और तब ही केंद्र भी खुलता है।

गाँव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं हैं, इसलिए महीने की 25 तारीख को ही अनीता बहनजी (आंगनबाड़ी कार्यकत्री) आती हैं, तभी पोषाहार बांटा जाता है, जिस दिन पोषाहार बांटा जाता है उसी दिन बच्चे भी केंद्र पर जाते हैं।
ऊषा सिंह (46 वर्ष), लकौड़ा गाँव की निवासी

उत्तर प्रदेश में बाल विकास और पुष्टाहार परियोजना के तहत चल रहे आंगनबाड़ी प्रोग्राम के लिए प्रदेश भर में क़रीब 2.50 लाख आंगनबाड़ी खोले गए हैं, जिसमें आने वाले बच्चों को रोज़ाना पुष्टाहार जैसे मूंग की खिचड़ी, अरहर की खिचड़ी, पोहा-हलवा या दलिया दिया जाना अनिवार्य है। इसके लिए आंगनबाड़ी चलाने वाले को हर महीने 3,000 रुपए भी मिलते हैं, पर इसके बावजूद आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां अपनी ज़िम्मेदारियों से बच रही हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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