छप्पर में रहने वाले प्रधान ने दर्जनों लोगों को दिलाई पक्की छत
गाँव कनेक्शन 13 Oct 2016 10:28 PM GMT

किशन कुमार, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
रायबरेली। नेताओं की तरह अब प्रधानों की एक कार्यकार्य में संपत्ति बढ़ना आम बात हो गई है। आज के दौर में प्रधान और पार्षद भी कुछ ही दिनों बड़ी-बड़ी गाड़ियों से चलने लगते हैं, बड़े-बड़े घर बनवाते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना पूरा ध्यान जनता पर ही लगाते हैं। रायबरेली जिले में एक ऐसा प्रधान है जो भले ही खुद छप्पर में रहता हो लेकिन उसने अपनी ग्राम पंचायत के दर्जनों लोगों को सरकार की मदद से पक्की छत दिलाई है।
''परधान का अहम न होय, परधान तो पूरे गाँव का होत है, यही लिये परधान का कोहू से इरशा (ईश्या) न रखेक चाही, सबका एकै निगाह से देखैक चाही।'' ये कहना है रायबरेली जिले के बछरावां ब्लॉक की तिलेंडा ग्रामसभा के ग्राम प्रधान बृजलाल (50 वर्ष) का, जो लगातार दूसरी बार गांव के प्रधान चुने गए हैं।
बृजलाल आज भी छप्पर के घर में रहते हैं और साइकिल से चलते हैं। वो पढ़े-लिखे भी नहीं है लेकिन उनके गांव में हुए विकासकार्य उनकी कार्यकुशलता को बयां करते हैं। बछरावां ब्लॉक से शिवगढ़ जाने वाली सड़क पर चार किमी. दूर स्थित ग्रामसभा तिलेंडा, जहां की आबादी लगभग चार हज़ार है। तिलेंडा सुरक्षित ग्रामसभा है जहाँ रावत, कुर्मी समुदाय की बहुल्यता है। साथ ही पंचायत में नब्बे घर मुस्लिम समुदाय के हैं। तिलेंडा ग्रामसभा में छः मजरे हैं,जिनमें भगतखेड़ा, ककरिहा, निहाल खेड़ा, बाबा चैरा, और तिलेंडा शामिल हैं। सभी मजरों में पक्की रोड बन चुकी हैं। पंचायत को खुले में शौच मुक्त बनाने का बीड़ा उठा चुके प्रधान बृजलाल बताते हैं,'' हमने पूरी पंचायत में अभीतक 300 शौचालय बनवाए हैं बाकी बचे 200 शौचालयों का निर्माण चालू है और अगले कुछ महीनों में ये काम पूरा हो जाएगा।''
पंचायत में करवाए गए विकास के बारे में पूछने पर बृजलाल बताते हैं कि काम करने का इरादा हो तो रास्ता खुद निकल आता है,जैसे आजकल ज़्यादातर ग्रामप्रधान सफाई कर्मचारी की कमी का रोना रोते हैं पर हमने खुद लेबर लगाकर कर सफाई करवाई है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग का जो पैसा प्रधान और एएनएम के संयुक्त खाते में आता है उसका इस्तेमाल किया गया है। गाँवों में मच्छरों का प्रकोप कम करने के लिए दवा छिड़काने साफ-सफाई में यही पैसा काम आता है।
ग्राम सभा में केवल 50 लोग ही अब अशिक्षित रह गए हैं, जो 60 वर्ष से ऊपर हैं। गाँव में प्राथमिक स्कूल और आंगनबाड़ी की व्यवस्था उत्तम है क्योंकि ग्राम प्रधान स्वयं रोज स्कूल और आंगनबाड़ी में समय देते हैं। मिड-डे-मील और हौसला पोषण योजना का सही रूप देखना है तो ग्रामसभा तिलेंडा इसका उदाहरण है।विकास कुमार (26 वर्ष), तिलेंडा गाँव के निवासी
तिलेंडा निवासी गुड्डू (45) बताते हैं कि गाँव में करीब 90 घरों की महिलाओं को समाजवादी पेंशन का लाभ भी दिया गया है। क्षेत्रवासियों की माने तो ग्राम प्रधान बृजलाल प्रधानी का एक पैसा अपने ऊपर नहीं खर्च करते हैं और बृजलाल का घर परिवार रहन-सहन देखकर ये बात सच ही लगती है। आज के समय में बृजलाल जैसा ग्राम प्रधान देखकर लगता है अभी उम्मीदें बाकी हैं कुछ लोग है जो खामोशी के साथ बेहतर काम को अंजाम दे रहे हैं।
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