कम समय में अधिक मुनाफे के लिए करें राजमा की खेती
गाँव कनेक्शन 8 Oct 2016 6:23 PM GMT

मोबिन अहमद- कम्यूनिटी जर्नलिस्ट
रायबरेली। राजमा की सब्जी हमें पांच सितारा होटल से लेकर हाइवे के किनारे बने छोटे ढाबों में आसानी से मिल जाती है। अन्य दलहनी फसलों की तुलना में राजमा की उपज आसानी से मिल जाती है इसलिए जिले में किसान अब दलहनी फसलों के तौर पर राजमा की खेती पर ज़ोर दे रहे हैं।
राजमा की बुवाई अक्टूबर माह से शुरू हो जाती है।राजमा की खेती के लिए दोमट व हल्की दोमट भूमि उपयुक्त होती है। इसके लिए खेत पर जल के निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। इसमें पहली जुताई, मिट्टी पलटने वाले हल और दूसरी व तीसरी जुताईयां देशी हल और कल्टीवेटर से की जानी चाहिए।सौरभ कश्यप, कृषि सलाहकार- खुशहाली कृषि केन्द्र
राजमा की फसल तैयार करने के लिए दो से तीन सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुवाई के चार सप्ताह के बाद पहली सिंचाई की जाती है। सिंचाई हमेशा इस तरह करें कि खेत में पानी ज़्यादा देर तक रूकने न पाए। राजमा की बुवाई से पहले बीजों को शोधित करना बहुत ज़रूरी होता है। बीज शोधन से अंकुरण के समय रोगों का प्रकोप रूक जाता है।
कृषि सलाहकार सौरभ कश्यप बताते हैं कि बीज की बुवाई 30-40 सेमी. की दूरी रख कर पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर करें। बुवाई के समय ही हमें जैविक उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए।
राजमा की खेती में पानी की काफी कम जरूरत पड़ती है, इसलिए यह ज़मीनी पानी के गिरते स्तर को बचाने में भी मददगार फसल मानी जाती है। वैसे तो राजमा की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश में ज़्यादा होती है, लेकिन इस फसल में कम समय में अच्छी उपज मिलने के कारण अब प्रदेश के पूर्वोत्तर हिस्से के किसान भी इसे अपनाने लगे हैं।
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