“शौच के लिए लोटा लेकर जाने में आती है शर्म”
Arvind Shukkla 2 Oct 2016 1:35 PM GMT

कविता द्विवेदी 24 वर्ष, MA (कम्यूनिटी जर्नलिस्ट)
हैदरगढ़ (बाराबंकी)। गांधी जयंती पर पूरा देश न सिर्फ उन्हें याद कर रहा है बल्कि उनके सपने को साकार करने के लिए स्वच्छ भारत की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। आज दिल्ली से लेकर लगभग हर प्रदेश और जिले में स्वच्छता पर चर्चा हुई और देश को खुले में शौच से मुक्त कराने की बातें हुईं लेकिन दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर बाराबंकी जिले के नरेंद्रपुर मदरहा गांव में दर्जनों महिलाएं रोज की तरह शौच करने के लिए घरों से बाहर गईं।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ तहसील के नरेंद्रपुर मदरहा गांव की लगभग हर महिला और पुरुष खुले में शौच जाते हैं, लोगों का दावा है कि उनके गांव में एक भी शौचालय नहीं बना। इसी गांव के अशोक सिंह (55 वर्ष) बताते हैं, "हमें भी बाहर शौच जाना अच्छा नहीं लगता, लेकिन इसे बनवाने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। हम ठहरे मजदूर आदमी सिर्फ परिवार चलाने भर का ही कमा पाते हैं, 10-15 हजार रुपये कहां से लाएं जो शौचालय बनवाएं।"
हमें भी बाहर शौच जाना अच्छा नहीं लगता, लेकिन इसे बनवाने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। हम ठहरे मजदूर आदमी सिर्फ परिवार चलाने भर का ही कमा पाते हैं, 10-15 हजार रुपये कहां से लाएं जो शौचालय बनवाएं।अशोक सिंह, निवासी, नरेंद्रपुर मदरहा, बाराबंकी
हालांकि भारत में वर्ष 1999 से ही सरकार अपने पैसे से शौचालय बनवा रही है। शुरुआत के कुछ वर्षों में लाभार्थी को आंशिक अनुदान करना पड़ता था लेकिन अब पूरा पैसा केंद्र सरकार दे रही है। पंचायती राज विभाग के माध्यम से गांव के प्रधान और पंचायत सचिव के माध्यम से ये काम होते हैं लेकिन नरेंद्रपुर मदरहा गांव में ऐसा क्यों नहीं हुआ ये पूछने पर ग्रामीणों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “यहां का प्रधान राम कुमार यादव 25 साल से प्रधानी जीत रहा है, लेकिन एक भी शौचालय का निर्माण नहीं करवाया है।”
इसी गांव की सरोज देवी (38 वर्ष) बताती हैँ, पूरी पंचायत में करीब दो हजार लोग रहते हैं लेकिन दो गांवों में मुश्किल से 20-30 शौचालय बने होंगे। कई तो खुद लोगों ने अपने पैसे से बनवाए हैं जो नहीं बनवा पाए वो खुले में शौच जाते हैं।”
गांव कनेक्शऩ से स्वयं प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश के 25 जिलों में हजारों छात्र-छात्राओं से बात की है, जिन्होंने खुले में शौच को बड़ी समस्या बताया है। छात्राओँ का कहना है मजबूरी में बाहर जाते हैं लेकिन लोटा लेकर बाहर जाने में बहुत शर्म आती है।
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