रायबरेली में भी है एक बुंदेलखंड, 1990 से नहीं आया कई नहरों में पानी, लोगों ने छोड़ी खेती
गाँव कनेक्शन 12 Oct 2016 9:27 PM GMT

किशन कुमार- कम्युनिटी जर्नलिस्ट
रायबरेली। ''कभी इस इलाके में फसल पैदा होती थी और गाँवों में फैले तालाबों में लबालब पानी भरा रहता था पर पिछले 30 वर्षों से यहां कि नहरों में धूल उड़ रही है। ''यह कहना है सरेनी बाज़ार में सब्जी की दुकान करने वाले नन्दकिशोर चौरसिया (45) का।
नन्दकिशोर की तरह ही सरेनी से लेकर लालगंज क्षेत्र के सैकड़ों गाँव तक, खेती किसानी अब सिर्फ उन्हीं के बस की बात है, जिनके पास ट्यूबवेल से सिंचाई करने का सामर्थ है। सूखी नहरों के कारण बहुत सारे लोगों ने किसानी से मुंह मोड़कर दूसरे व्यवसाय शुरु कर दिए हैं। हथिनासा ग्रामसभा के कृपाशंकर, जो अपना ढाई बीघा खेत बटाई पर देकर सरेनी बाज़ार में ही कपड़े की दुकान लगाते हैं।
वर्ष 1977 से लेकर 1990 तक सरेनी भोजपुर, दौलतुपर से लेकर काल्हीखेड़ा, खजूरगाँव तक हरियाली और खुशहाली थी, तब पुरवा और मौरावाँ की बड़ी नहरों से यहां की छोटी नहरों को पानी मिलता था। लेकिन 1990 के बाद से क्षेत्र की नहरों में पानी आना बंद होने लगा और अब तो यहां धूल उड़ती है। जिससे हरे भरे खेत बंजर में तब्दील हो गए।
इस क्षेत्र में 25 वर्ष की उम्र तक के किसी भी महिला पुरुष से पूछ लीजिए उन्होंने अपनी जिन्दगी में अबतक इन नहरों में पानी नहीं देखा होगा। हां यह बात अलग है कि नहरों के रखरखाव में खर्च बराबर किया जा रहा है और विभागीय अधिकारियों की दौड़भाग भी जारी है पर इसके बावजूद नहरें सूखी पड़ी हैं।योगेन्द्र सिंह (42 वर्ष), किसान नेता
सरेनी ब्लॉक को वर्ष 2010 में ही डार्कज़ोन घोशित किया जा चुका है। सरेनी गाँव के निवासी प्रधान अजय सिंह (30 वर्ष) बताते हैं कि क्षेत्र के इण्डिया मार्का हैंडपंप बेकार हो गए हैं। सरेनी कस्बे में तो पानी की टंकी से सप्लाई मिल जाती है, लेकिन आसपास के गाँवों में हैंडपंप भी शोपीस बन कर रह गए हैं। कहीं-कहीं सौर ऊर्जा चलित नलकूप भी लगाए गए हैं पर उनसब ने ज़्यादा दिन साथ नहीं दिया और दो-तीन महीनों में ही फेल हो गए।
किसानों के लगातार मांग करने पर भी सरेनी ब्लॉक और लालगंज ब्लॉक में नहरों में पानी नहीं आया है और न ही सरेनी को डार्कज़ोन से उबारने की कोई कोशिश की जा रही है।
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