10-10 दिनों में शिक्षक आते हैं स्कूल और चले जाते हैं टहल कर
गाँव कनेक्शन 30 Oct 2016 1:45 PM GMT
कम्यूनिटी जनर्लिस्ट: कविता द्विवेदी
बाराबंकी। उत्तर प्रदेश में 1 लाख 58 हजार 396 बेसिक स्कूल हैं। पिछले दो वर्षों में सवा दो लाख शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। हाल ही में तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 20 हजार स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक है। वहीं, शहरी क्षेत्र से सटे हजारों स्कूलों में आठ से ज्यादा शिक्षक तैनात कर दिए गए हैं। इन सब के बावजूद जो शिक्षक तैनात हैं उनमें से अधिकांश शिक्षक विद्यालय में पढ़ा नहीं रहे हैं और कुछ अपनी जगह पढ़ाने के लिए दूसरों को भेज रहे हैं। ऐसा ही मामला बाराबंकी में देखने को मिला है। यहां विद्यालय में शिक्षक आते नहीं, अगर कभी कभार आते भी हैं तो पढ़ाते नहीं सिर्फ टहल कर चले जाते हैं।
हम पढ़े-लिखे नहीं हैं, मगर हमारे बच्चे तो पढ़े लें
बाराबंकी मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर हरक्का ग्राम सभा के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक बच्चों को पढ़ाने से दूर हैं। बच्चों के भविष्य के साथ हर रोज खिलवाड़ करते नजर आते हैं। हरक्का के ग्रामीण साकिर (48 वर्ष) बताते हैं, "एक तो हम पढ़े-लिखे नहीं हैं, मगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ लिख जाएं। वो पढ़-लिख कर अच्छा बुरा समझ सकें। जिसके लिए हम अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं, पर स्कूल के मास्टर हमसे भी गये गुजरे हैं। वो स्कूल को अपने घर की जागीर समझते हैं। कभी आते हैं तो कभी नहीं आते हैं। अगर आ भी जाते हैँ तो सिर्फ टहल कर चले जाते हैं।"
ब्लैकबोर्ड में नहीं बदलती तारीख
साकिर आगे बताते हैं, "10-10 दिन हो जाता हैं स्कूल के ब्लैकबोर्ड में तारीख नहीं बदली जाती है, बच्चों को छोटा अ भी नहीं आता है। स्कूल की हालात ऐसी है कि मानो वो तबेला घर हो। न दरवाजे मजबूत हैं, न दरवाजों में ताला लगता है, वो यूं ही खुला पड़े रहते हैं। स्कूल में बाउंडरी भी नहीं है, जिसके चलते छुट्टा जानवर आकर खुले हाल में दोपहर के समय आराम फरमाते हैं और उसी हाल को गोबर से गंदा भी कर देते हैं। स्कूल के कमरों में बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं, जिस पर मास्टर साहब तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं और स्कूल का ब्लैकबोर्ड तो ऐसा है कि उसमे बच्चों को एक भी अछर दिखाई न दे।"
हरक्का के अनिल कुमार बताते हैं, "स्कूल के शिक्षक पढ़ाई के नाम पर बच्चों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हमारे बच्चों का भविष्य अंधकार में जा रहा है इनकी ऐसी पढ़ाई से।"
This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).
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