यहां एक छत के नीचे बनाए जाते हैं रावण और ताजिया

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यहां एक छत के नीचे बनाए जाते हैं रावण और ताजियायहां एक छत के नीचे बनाए जाते हैं रावण और ताजिया

अभिषेक सिंह, कक्षा: 12, बाल विद्या मंदिर इंटर कालेज ( स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट)

स्वयं डेस्क प्रोजेक्ट

रायबरेली। रायबरेली के डलमऊ इलाके के कारीगर मो. इलियास 10 वर्षों से रावण का पुतला बनाने का काम कर रहे हैं। उनके बनाए हुए पुतले डलमऊ में तीन स्थानों पर जलाए जाते हैं। इलियास में दिन में ताजिया और रात में रावण का पुतला बनाते हैं। इनके कार्यस्थल पर दो विभिन्न संप्रदायों का मिलन होता नजर आता है।

मो. इलियास बताते हैं, ''इस साल कुछ ज़्यादा काम आ गया है, क्योंकि मोहर्रम और दशहरा एक ही दिन पड़ गया है। इसीलिए हम दिन में ताजिया और रात में रावण का पुतला बनाने का काम कर रहे हैं। ताजिया और रावण जितना ऊंचा बनता है उतना ही लोग इसे पसंद करते हैं। इसलिए हम पुतला बनाने में दिन-रात मेहनत करते हैं।''

वहीं, जिले के जाने-माने कारीगर उमेश चंद्र (69 वर्ष) रायबरेली की सुरजूपुर राम लीला समिति की ओर से रावण बनाने का काम पिछले 40 वर्षों से कर रहे हैं। रायबरेली जिले में सुरजूपुर में सबसे बड़ा दशहरे का मेला लगता है, जिसमें आकर्षण का केंद्र माने जाने वाले रावण को खुद उमेश चंद्र बनाते हैं।

रायबरेली में पिछले 25 वर्षों से रावण के पुतले बनाए जा रहे हैं। पुतले बनाने वाले अधिकांश कारीगर सतावं, डलमऊ, लालगंज और हरचंदपुर व्लॉक के हैं।

उमेश आगे बताते हैं, "रायबरेली में कई जगहों पर रावण दहन होता है पर सुरजूपुर की रामलीला का रावण दहन सबसे खास होता है। हमारे साथ इस रावण को बनाने में 10 से 15 कारीगर लगते हैं। पूरा रावण तैयार करने में दो महीने लग जाते हैं। यहां 17 से 20 फुट का रावण जलाया जाता है।"


       

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