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ढाई साल पहले इस गाँव में भी कच्ची शराब से हुई थी 12 लोगों की मौत 

uttar pradesh

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। मलीहाबाद के खड़ता गाँव के लिए 12 जनवरी 2015 का दिन काल के समान था। कच्ची शराब पीने की वजह गाँव के 12 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के लगभग दो साल बाद भी अपने दो बेटों मंगल प्रसाद और सिद्धेश्वर प्रसाद को खोने वाली बुजुर्ग सुमित्रा उन्हें याद कर फफक-फफक कर रोने लगती हैं।

उन्हें इस बात का मलाल है कि आज भी यहां कच्ची शराब खुलेआम बिकती है और प्रशासन कुछ नहीं करता।खड़ता गाँव की इस घटना के बाद सरकार, पुलिस और आबकारी विभाग की काफी आलोचना हुई थी। प्रशासन ने तब कुछ भट्टियों पर कार्यवाही भी की थी, लेकिन यहाँ अब भी कच्ची शराब पहुंच रही है।

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खड़ता गाँव में ज्यादातर लोगों के घर कच्चे हैं। गाँव में आर्थिक तंगी से ज्यादातर लोग परेशान हैं। गाँव के निवासी सुभाष चंद मौर्या बताते हैं, “उस दिन जिस परिवार में पिता की मौत हुई, आज उनका बेटा ही शराब पी रहा है। गाँव की हालत बेहद खराब है। दूसरी जगहों पर हम देखते हैं कि लोग शाम के समय शराब पीकर आते हैं, लेकिन यहाँ तो सुबह से ही लोग शराब पीने लगते हैं।”

गाँव की रहने वाली महिला शिवती देवी गुस्से में कहती हैं, “जब कच्ची शराब पीकर लोगों की मौत हुई तो सरकार ने सबके परिजनों को पैसे दिए, लेकिन उस पैसे का ज्यादातर हिस्सा मृतकों के लड़कों ने शराब पर खर्च किया। सरकार ने बाज़ार में देसी शराब की दुकान खुलवा दी है तो शराब पीना कैसे बंद होगा।”

अब भी मिलती है कच्ची शराब

स्थानीय निवासी नन्द किशोर बताते हैं, “जब खड़ता गाँव में घटना हुई, तब कच्ची शराब की भट्टी खड़ता गाँव में ही थी। घटना के बाद गाँव के लोगों ने पुलिस के साथ मिलकर उसे हटवा दिया। उस दौरान आसपास की सभी कच्ची शराब की भट्टियों को बंद करा दिया गया था, लेकिन घटना के कुछ दिनों बाद ही आसपास कच्ची शराब की भट्टियां खुल गईं।”

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खड़ता गाँव से महज़ दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित धोला गाँव में भी कच्ची शराब मिलती है। गाँव के लोग वहां से खरीद कर लाते हैं। वैसे खड़ता बाज़ार पर सरकारी देशी शराब की दुकान है। खड़ता गाँव के प्रधान अर्जित मौर्या बताते हैं, “घटना का हमारे यहाँ लोगों पर काफी असर पड़ा। गाँव में जो कच्ची शराब की भट्टी थी, उसे हमने बंद करा दिया, लेकिन कुछ लोग आदत से मजबूर हैं।” मलीहाबाद थाने के थानाध्यक्ष पीपी सिंह ने बताया, “उस घटना के बाद से खड़ता गाँव में तो शराब नहीं बनती है। आसपास में चोरी छिपे जो भी शराब बनाता है, उस पर हम शिकंजा कसते हैं।”

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