गुम हो रही ढेढिया लोकनृत्य की विधा को बीना ने दी नई पहचान

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गुम हो रही ढेढिया लोकनृत्य की विधा को बीना ने दी नई पहचानएक कार्यक्रम के दौरान ढेढिया लोक नृत्य करते कलाकार।

स्वयं डेस्क

स्वयं प्रोजेक्ट लखनऊ। आजकल जहां युवा लोक कलाओं से दूर जा रहे हैं। वहीं कई कलाकार पुरानी लोक विधाओं को न केवल संजोए हुए हैं, बल्कि दूसरे लोगों को भी सिखा रहे हैं। कुछ ऐसी लोक नृत्य की विधाएं हैं, जिन्हें जानने वाले बहुत कम कलाकार ही बचे हैं, इन्हीं में से एक लोक नृत्य की विधा है ढेढिया नृत्य। आज प्रदेश में इस लोकनृत्य की विधा को जानने वाले बहुत कम कलाकार बचे हैं। ऐसी ही एक कलाकार हैं, इलाहाबाद की बीना सिंह (45 वर्ष), जो दूसरे कलाकारों को भी इसका प्रशिक्षण देकर इस लोकनृत्य की विधा को आगे बढ़ा रही हैं।

लड़कियों को देती हैं प्रशिक्षण

इलाहाबाद में बीना सिंह सरस्वती सुर संगम नाम से संस्थान चलाती हैं। इसमें वो अभी तक हजारों लड़कियों को लोकनृत्य का प्रशिक्षण देती हैं। ढेढिया के साथ ही हरियाणा और राजस्थान के लोकनृत्यों को सिखाती हैं। बीना कहती हैं, "इलाहाबाद और आस-पास के कई जिलों में मैं अकेले ही इस नृत्य को जानने वाली हूं। इलाहाबाद के साथ ही ढेढिया नृत्य कानपुर, कौशांबी जिलों में किया जाता है।"

तब मैंने शुरू किया संस्थान

बीना सिंह बताती हैं, "हमारे समय में ढेढिया नृत्य जानने वाले बहुत से कलाकार थे, लेकिन अब नयी पीढ़ी ऐसी लोक नृत्य की विधाओं की सीखना ही नहीं चाहते हैं। इसलिए मैंने नृत्य संस्थान शुरू किया है, जहां पर ढेढिया जैसी कई और भी लोक नृत्य भी सिखाए जा रहे हैं।"

ढेढिया लोक नृत्य को नहीं मिल पाई पहचान

कलाकार बीना मिश्रा।

"ग्रामीण क्षेत्र के कलाकार अपनी अभिव्यक्ति को लोकनृत्य के माध्यम से दर्शाते थे, लेकिन धीरे-धीरे ढेढिया लोकनृत्य विधा खत्म हो रही है। इसको वो पहचान नहीं मिल पायी जो आज दूसरे लोकनृत्यों को मिली है।" बीना सिंह बताती हैं कि ढेढिया लोकनृत्य में आठ-दस महिलाएं एक साथ सिर पर मिट्टी के घड़े पर दीया रखकर गीत के लय पर नृत्य करती हैं। एक महिला बीच में और सभी महिलाएं उसके चारों ओर घूमकर नाचती हैं। कई बार तो सिर पर कई घड़े रखकर भी नाचती हैं। बीना आगे कहती हैं, "डीजे और फिल्मों के आगे अब लोग गीत संगीत कलाकारों को तवज्जो ही नहीं देते हैं, लेकिन अभी भी कई ऐसे लोग हैं, जो इसे पसंद करते हैं। अभी हमारा ग्रुप सिंहस्थ महाकुंभ में प्रस्तुति देकर लौटा है।"

श्रीराम के वनवास लौटने पर अयोध्यावासियों ने किया था ढेढिया नृत्य

चौदह वर्ष के वनवास के बाद भगवान श्रीराम जब वापस आए तो अयोध्यावासियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। अयोध्या की महिलाओं ने श्रीराम के स्वागत में मिट्टी के घड़े पर दीया रखकर नृत्य किया और ये नृत्य कहलाया ढेढिया नृत्य। अवध के इस पारम्परिक लोक नृत्य में प्रदर्शित किया गया कि भगवान श्रीराम के वनवास से अयोध्या वापस आने पर अयोध्यावासियों द्वारा पुलकित मन से नाच-गाकर अपनी खुशियां मनाई।

भाई की दीर्घायू के लिए मनाया जाता है ढेढिया त्योहार

कौशांबी और इलाहाबाद में ढेढिया त्योहार भी मनाया जाता है। इसमें बहनें भाइयों की मंगलकामना के लिए ढेड़िया उतारती है। जालीदार ढेड़िया में दीया रखकर भाई की नजर उतारने के बाद उसे चौराहे पर फेंक दिया जाता है। पर्व के लिए ढेड़िया तैयार करने में कुम्हारों का कुनबा जुटा रहता है। उन्होंने कच्ची मिट्टी से बने बिना गरदनदार कलश को झरोखेदार रूप देकर ढेड़िया तैयार किया जाता है। इसी में दीया रखकर भाइयों की नजर उतारी जाती है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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