संविदा पर काम करने वाले लाइनमैन वर्षों बाद भी नहीं हुए नियमित 

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संविदा पर काम करने वाले लाइनमैन वर्षों बाद भी नहीं हुए नियमित तस्वीर सांकेतिक

मानसी, कक्षा-12, उम्र-17 वर्ष कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

आरएस पब्लिक इंटर कॉलेज, गांधीनगर

तिर्वा (कन्नौज)। लोगों के घरों को रौशन करने वाले लाइनमैनों की जिंदगी अंधेरे में है। बिजली की हाईटशन लाइन टूटे या घर का केबल, ये लाइनमैंन ही लगाए जाते हैं लेकिन जिस अनुपाम में इऩका काम बढ़ा वैसी आमदनी नहीं हो रही है। संविदा के आधार पर काम करने वाले ये लाइनमैन जान जोखिम में डालकर काम करते हैं।

तिर्वा कस्बे के रहने वाले परशुराम (45 वर्ष) आए दिन अपनी जान जोखिम में डालकर बिजली के तार सही करते हैं। लेकिन विभाग से इतने कम पैसे मिलते हैं कि घर चलाना मुश्किल हो गया है। वो बताते हैं, इतनी महंगाई में दो हजार रुपये में क्या होता है। बच्चों की फीस भरें या उन्हें भरपेट खाना खिलाए। परशुराम की तरह जिले में तमाम ऐसे लोग हैं कईयों को तो हर महीने ये दो हजार रुपये भी नहीं मिलते हैं। बौरापुर निवासी रामसिंह (35 वर्ष) का कहना है कि वह करीब 16 सालों से बिजली विभाग में काम कर रहे हैं। परमानेंट होना तो दूर की बात वेतन ही नहीं दिया जाता है। परिवार का खर्च चलाने में दिक्कत आती है। धारानगर गांव निवासी कल्लू भी कई वर्षों से नियमित होने की राह देख रहे हैं। बेहरापुर गांव निवासी रवि (26 वर्ष) का कहना है कि वह आठ सालों से लोगों की सेवा कर रहे हैं। लेकिन उसका फल अब तक नहीं मिला है। कई बार हम लोगों ने अधिकारियों को ज्ञापन दिया। जनप्रतिनिधियों के समक्ष भी अपनी बात रखी, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। कई लोगों की उम्र आधे से अधिक हो रही है। पर किसी ने समस्या का समाधान नहीं किया है। इससे लोग परेशान हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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