नोटबंदी: उधार के मिड-डे मील से भर रहा बच्चों का पेट

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नोटबंदी: उधार के मिड-डे मील से भर रहा बच्चों का पेटप्रतीकात्मक फोटो 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। नोटबंदी के असर से सरकारी स्कूलों में मिलने वाला दोपहर का भोजन (एमडीएम) भी अछूता नहीं है। प्रदेशभर के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में एमडीएम यानी मिड-डे मील योजना के तहत बच्चों को दिया जाने वाला खाना, दूध व फल स्कूलों तक पहुंचाने में संस्थाओं को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। खाना बनवाने और उसको स्कूलों तक पहुंचाने के लिए संस्थाओं को सामान उधार लेना पड़ रहा है। यह हाल केवल शहरों का नहीं बल्कि गाँवों के स्कूलों का भी है जहां ग्राम प्रधान के जरिये स्कूलों में रसोइयों के द्वारा खाना बनवाया जाता है। नोटबंदी से जूझ रहे इन संस्थाओं और ग्राम प्रधानों को फिलहाल स्कूलों में हो रही छुटिटयां कुछ राहत दे रही हैं।

लखनऊ के कुछ स्कूलों में एमडीएम पहुंचाने वाली संस्था के प्रमुख अवधेश कुमार ने बताया कि स्कूलों में एमडीएम भेजने के लिए राशन की दुकान पर कभी चेक दे देते हैं तो दूध के लिए उधार चल रहा है, लेकिन सब्जी खरीदने के लिए नकद की जरूरत पड़ती है, जिसके चलते बहुत परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि रविवार को साप्ताहिक अवकाश, सोमवार को गुरुनानक जयंती और बुधवार को शहीदी दिवस होने के कारण स्कूलों में हुई छुट्टियों ने कुछ राहत दी, जिससे जरूरत के लिए पैसों का इंतजाम करने में सहायता मिली।

जब नोटबंदी की शुरुआत हुई थी तब एक-दो दिन तो कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन अब हमारे पास कैश की दिक्कत है इसलिए उधारी से काम चला रहे हैं।
हीरालाल सिंह, प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय चित्रकूट

वहीं दूसरी ओर नैमिष प्रगति सेवा संस्थान के प्रमुख रमाकान्त यादव ने बताया कि नोटबंदी के कारण हम लोगों को काफी परेशानी हो रही है। घर के लिए तो कम सब्जी और राशन में काम चलाया जा सकता है, लेकिन स्कूलों में बच्चों के लिए खाना भिजवाना जरूरी है। इसलिए सामान उधार लेकर खाना बनावाना पड़ रहा है। फल वाला उधार देने को तैयार नहीं है तो फल वितरण अभी नहीं हो सका है।

मोहनलालगंज, गोसाईगंज, मलिहाबाद जैसे ब्लॉकों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। यहां स्कूलों में ग्राम प्रधानों के माध्यम से खाना बनावाया जाता है। मॉल ब्लॉक के ग्राम प्रधान गायत्री सिंह कहते हैं कि कोटेदारों के यहां से गल्ला आ जाता है, जिसको स्कूलों में भेज देते हैं और अन्य सामानों का पैसा पहले ही प्रधानाध्यापक को दे दिया जाता है, जिसके लिए वह सामान पहले से ही मंगवा लेते हैं। केवल सब्जी की दिक्कत रहती है, जिसके लिए उधार चल जाता है।

चित्रकूट, कर्बी ब्लॉक स्थित प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक अशोक सिंह चंद्रगाहवा ने कहा कि शुरू के एक-दो दिन तो हम शिक्षकों ने मिलजुल कर अपने स्तर पर खाने का इंतजाम कर दिया था, लेकिन अब मुश्किल है। हम लोगों ने एक दुकान पर अपना खाता खुलवा दिया है जहां से सामान उधार ले रहे हैं। चित्रकूट के ही मानिकपुर ब्लॉक स्थित प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक किशन प्रसाद सिंह ने कहा कि नोटबंदी है, लेकिन बच्चों को खाना तो देना ही है इसलिए हम लोगों को भी उधार लेकर काम चलाना पड़ रहा है।

फोटो: विनय गुप्ता

नोटबंदी के चलते एमडीएम उपलब्ध करवाने में आ रही दिक्कतों के चलते उत्तर प्रदेश जूनियर हाई स्कूल संघ, मैनपुरी के जिलाध्यक्ष गोविन्द पांडेय ने कहा कि वैसे तो पिछले आठ महीनों से एमडीएम की कन्वर्जन कास्ट ही नहीं भेजी गई है। अभी तक शिक्षक अपनी जेब से ही भोजन का इंतजाम कर रहे थे। लेकिन अब पैसे नहीं बचे हैं उस पर निकासी की लिमिट निर्धारित कर दी गई है। अब ऐसे में अपने घर का खर्च चलाना ही मुश्किल हो रहा है तो एमडीएम किस तरह से उपलब्ध करवाया जाएगा।

बाराबंकी के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में नोटबंदी का असर साफ साफ दिख रहा है रोजमर्रा की जरूरतों से लेकर मिड-डे मील और सप्ताह में बच्चों को दिए जाने वाले फल वितरण पर भी इसका असर है। बंकी निवासी लालजी प्रजापति हरख ब्लाक के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाते हैं। उनका कहना है कि क्या किया जाए समस्या तो है, लेकिन मैनेज करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यह समस्या केवल एक स्कूल की नहीं है बल्कि यह समस्या सभी स्कूलों में है।

सहयोग - मीनल टिंगल, चित्रकूट से प्रभाकर सिंह, मैनपुरी से वीरभान सिंह, बाराबंकी से सतीश कश्यप, सीतापुर से हर्षित कुमार

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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