अरविन्द्र सिंह परमार, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट
महरौनी (ललितपुर)। छुट्टा जानवरों से परेशान बुंदेलखंड के किसानों ने मिलकर उपाय निकाला है। ललितपुर जिले में कई किसानों ने मिलकर फसलों को चौपट कर रहे पशुओं को ही आसरा दे दिया है। गांव के लोग अब बारी-बारी से इन्हें चराते हैं। ग्रामीणों की इस पहल से जहां हजारों एकड़ फसल बच रही हैं, वहीं इऩ पशुओं को भी भूखे नहीं मरना पड़ रहा है।
बुंदेलखंड के ललितपुर,बांदा, महोबा और चित्रकूट समेत सातों जिले और लभगभ पूरा यूपी छुट्टा जानवरों से परेशान हैं। छुट्टा छोड़ी गई गाय और उनके बछड़ों को यहां अऩ्ना कहा जाता है, जिनकी संख्या लाखों में है। हर साल ये पशु हजारों एकड़ फसल चौपट कर देते हैं, सूखे के बाद अऩ्ना प्रथा बुंदेलखंड के लिए कलंक जैसी है। किसी तरह का काम न आऩे वाले इन पशुओं के आतंक के चलते हजारों किसानों ने खेती छोड़ दी है।
दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर ललितपुर जिले में भी किसान इन पशुओं परेशान थे, लेकिन अब उन्होंने इनसे बचने का उपाय निकाल लिया है। मेहरौनी ब्लॉक के सिलावन गांव के आसपास करीब 400 छुट्टा जानवर थे। ग्रामीणों ने इन जानवरों को पकड़कर पास की सरकारी मंडी में बंद कर दिया है। जनवरों के लिए यहां पानी और भूसे का भी इंतजाम किया गया है। इतना ही नहीं गांव के लोग बारी-बारी से इन्हें चराने भी जाते है। सिलावन गाँव मे 3200 वोटर व कुल जनसंख्या दस हजार के लगभग है। गांव में करीब 1800 एकड़ में खेती योग्य जमीन भी है।
जानवर सब फसल खाए जा रहे थे। कई जतन किए। मारपीट कर भगाया, रात-रात भर रखवाली की लेकिन कुछ नहीं हुआ तो हम लोगों ने इन सबको हांक कर मंडी पहुंचा दिया, वहीं इऩके चारे पानी का इंतजाम किया है, इस तरह थोड़ा खर्चा सबको पड़ेगा लेकिन फसल बच जाएगी।
देवभान सिंह, निवासी, सिलावन गांव, ललितपुर
ललितपुर जिला मुख्यालय से 29 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में सिलावन गांव के देवभान सिंह बुंदेला (33 वर्ष) बताते हैं, “पूरा इलाका अऩ्ना जानवरों से परेशान था। मौसम की मेहरबानी से रबी की फसल अच्छी थी लेकिन जानवर खाए जा रहे थे। कई जतन किए, इन्हें मारपीट कर भगाया, रात-रात भर रखवाली की लेकिन कुछ नहीं हुआ तो हम लोगों ने इन सबको हांक कर मंडी पहुंचा दिया, वहीं इऩके चारे पानी का इंतजाम किया है, इस तरह थोड़ा खर्चा सबको पड़ेगा लेकिन फसल बच जाएगी।”
सिलावन गांव के लोगों ने अब तक करीब 400 पशुओं को आसरा दिया है। बुंदेला आगे बताते हैं, “सिर्फ भूसा देकर इन्हें पाला नहीं जा सकता है इसलिए हम सब ने मिलकर हर मुहल्ले से 4-4 लोगों की कमेटी बना दी है, जो इऩ्हें बारी-बारी से चराने ले जाते हैं, इस काम में कोई कोताही न हो और जानवरों को भी कोई दिक्कत न हो इसलिए एक निरिक्षण टीम भी बनाई गई है, जो जरुरी दिशा-निर्देश देती है।”
हम चार लोग इऩ्हें सुबह चराने लाए थे, शाम को मंडी की बाउंड्री में पहुंचा देंगे। आज मेरी ड्यूटी थी, कल कुम्हरयाने मुहल्ले को लोगों की ड्यूटी है। इसतरह महीने में कुछ दिन काम करके सबके खेत सुरक्षित हो गए हैं।
सीताराम, ग्रामीण ललितपुर
अपनी बारी पर इऩ जानवरों को वन क्षेत्र में चराते मिले सीताराम (31 वर्ष) बताते हैं, “हम चार लोग इऩ्हें सुबह चराने लाए थे, शाम को मंडी की बाउंड्री में पहुंचा देंगे। आज मेरी ड्यूटी थी, कल कुम्हरयाने मुहल्ले को लोगों की ड्यूटी है। इसतरह महीने में कुछ दिन काम करके सबके खेत सुरक्षित हो गए हैं।”
19वीं पशुगणना के अनुसार बुंदेलखंड में 57 लाख पशु हैं, जिनमें से 23 लाख 50 हजार गोवंश हैं। इनमें से करीब 15 लाख पशु छुट्टा जानवर हैं,जिन्हें स्थानीय भाषा में अन्ना कहा जाता है। इन्हीं पशुओं की बदौलत बुंदेलखंड दुनिया में सबसे कम उत्पादकता वाले क्षेत्र में शामिल है। ये रिपोर्ट 2012 में आई थी, 20वीं पशुगणना के आंकड़े इस साल मार्च तक जारी हो सकते हैं, जिसमे ये आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है। पशुओं से फसलों को बचाने के लिए किसान दिन-रात रखवाली करते हैं तो बुंदेलखंड से आऩे वाली मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कई किसान इससे परेशान होकर आत्महत्या तक कर चुके हैं।
सिलावन गांव के सुनील सेन लंबी सांस भरते हुए बताते हैं,थोड़ी मेहनत तो हुई है लेकिन खेती बच गई है। जिनके पास थोड़ा ज्यादा भूसा था उन्होंने दे दिया है, मंडी में ही गड्ढा करवाकर पानी भर दिया गया है, ताकि जानवर पी सकें।”
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में 31 जनवरी तक एक लाख 35 हेक्टेयर गेहूं, और एक लाख 23 हजार हेक्टेयर दलहनी फसलें लगी है। इस दौरान पूरे जिले में करीब 3 लाख हेक्टेयर फसल लगी है। पिछले कई वर्षों से सूखे का सामना कर रहे लोगों को उम्मीद है आसमानी आपदा नहीं आई और अन्ना जानवरों से फसल बच गई तो ग्रामीणों को बड़ी राहत मिल जाएगी।