अब बुंदेलखंड में भी बढ़ रही बिना रसायन के खेती

Neetu SinghNeetu Singh   7 Nov 2016 8:57 PM GMT

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अब बुंदेलखंड में भी बढ़ रही बिना रसायन के खेतीजैविक खेती के जरिये बुंदेलखंड के किसान बदल रहे अपनी किस्मत।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ । सात महीने पहले केला की खेती करनी शुरू की थी। इस पूरी फसल को जैविक ढंग से तैयार किया। फसल में बाजार से कीटनाशक और खाद का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ है। फसल भी अच्छी है और लागत भी न के बराबर है, यह कहना है किसान राजेश जैन का।

तब सोचा खुद ही खेती करूं

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिला से 68 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में पिपरिया गाँव है। इस गाँव में रहने वाले राजेश जैन (30 वर्ष) फ़ोन पर हुई बातचीत में बताते हैं कि मैंने बीएससी की पढ़ाई करने के बाद खुद का बिजनेस शुरू किया, जिसमें सब्जी मसालों को पीसते थे। वो आगे बताते हैं कि मुझे लगा अगर मैं खुद खेती करूंगा तो अपने ही खेत में धनिया, जीरा, मिर्च, मेंथी पैदा करूंगा, जिससे हमें ये चीजें बाजार से नहीं खरीदनी पड़ेंगी। ये सोच कर मैंने वर्ष 2015 से खेती करना शुरू किया।

तब ही जैविक कीटनाशक का छिड़काव करेंगे

राजेश जैन का कहना है कि मैं इस बात को अच्छे से समझता था कि अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशक के इस्तेमाल से मिट्टी के जीवाणु खत्म हो रहे हैं। इस वजह से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो रही है और लागत भी ज्यादा लग रही है। इसलिए मैंने कई जगह से प्रशिक्षण लेकर जीरो बजट से खेती करना शुरू किया। शुरुआत केले के खेती से की और अब धनिया, जीरा, मेंथी, मिर्च की बुआई जीवामृत डालकर कर दी है। इस पूरी फसल में सिंचाई के दौरान जीवामृत डालेंगे और अगर कीड़ा या माहू लग गया तो जैविक कीटनाशक का छिड़काव करेंगे। राजेश का कहना है कि पूरी फसल में खाद और कीटनाशक का उपयोग नहीं करेंगे। मैंने शुरुआत एक एकड़ से की है और आने वाले समय में और ज्यादा जमीन में करेंगे।

एक एकड़ के लिए जीवामृत बनाने की विधि

10 किलो देसी गाय का गोबर,10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र, एक किलो गुड़, एक किलो बेसन, 100 ग्राम पीपल ले पेड़ के नीचे की मिट्टी, सभी सामग्री को एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 लीटर पानी में घोल दें। 48 घंटे डिब्बे को ऊपर से बोर से ढकना हैं। सुबह-शाम एक मिनट लकड़ी से घड़ी की सुई की दिशा में इस घोल को चलाना है। इस घोल का प्रयोग किसी भी फसल की बोआई से पहले खेत में डाल देते हैं। इसके बाद बीज बोकर खेत की जुताई कर देते हैं। फसल में जितनी भी बार पानी लगाते हैं, उस पानी में इस पूरे घोल को डाल देते हैं। जीवामृत को फसल में डालने से फसल में खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ती।

जैविक कीटनाशी बनाने की विधि

एक किलो नीम की पत्ती, एक किलो अकौवा के पत्ते, एक किलो धतूरे के पत्ते, एक किलो सीताफल के पत्ते, 5 से 10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र, इसके अलावा वो सभी पत्ते डाल सकते हैं जिसे गाय न खाती हो। गोमूत्र में ये सभी सामग्री मिलाकर 15 दिनों के लिए एक बर्तन में ढककर रख देते हैं। 15 दिनों बाद जब ये पत्ते इस गोमूत्र में गल जाएं, तब इसे छानकर एक डिब्बे में भरकर रख दिया जाता है। इस कीटनाशी का उपयोग फसल में तब करते हैं, जब फसल में कीड़ा या माहू लग जाता है। फसल में कीड़ा लगने पर एक एकड़ खेत में 60 लीटर पानी में 2 लीटर जैविक कीटनाशी मिलाकर पूरी फसल में छिडकाव कर देते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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