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बाजार अच्छा होने से कुम्हड़ा की खेती में मुनाफा ज्यादा

Swayam Project

कानपुर देहात। बारिश होते ही किसान अपने खेतों में कुम्हड़ा की बुवाई करने में जुट गए हैं। कुम्हड़ा की फसल 120 दिन की होती है, एक बीघे की लागत तीन हजार रुपए आती है, मंडी भाव के हिसाब से एक बीघे में किसान को 15 से 35 हजार तक का मुनाफा हो जाता है।

कानपुर देहात जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर राजपुर ब्लॉक के डाढापुर गाँव में हर साल कुम्हड़ा की सैकड़ों बीघा खेती होती है। इस गाँव में रहने वाले बसंत कटियार (38 वर्ष) बताते हैं, “कुम्हड़ा की फसल से एक मुश्त आमदनी हो जाती है, गर्मियों में गहरी जुताई करके गोबर की खाद डाल देते हैं घर के सभी लोग मिलकर इसकी बुवाई से लेकर फसल तैयार होने तक पूरी मेहनत खुद ही कर लेते हैं।”

तीन से चार महीने में होने वाली कुम्हड़ा की फसल से बनने वाले पेठे की मिठास विदेशों तक फैली है। मई के आख़िरी सप्ताह या जून के पहले सप्ताह में जो बुवाई हो जाती है वो फसल सितम्बर में तैयार हो जाती है। उसे अगैती फसल कहते हैं, जो जुलाई के प्रथम सप्ताह में बुवाई होती है वो नवम्बर में तैयार हो जाती है।

इसे किसान पक्की फसल मानते हैं। कद्दू पेठे की खेती सबसे ज्यादा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित पूरे भारत में इसकी खेती की जाती है। कद्दू की इस प्रजाति को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

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पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे भतुआ कोहड़ा, भूरा कद्दू, कुष्मान या कुष्मांड फल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पेठा कद्दू की मांग पेठा मिठाई बनाने के लिए है, ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए माली आमदनी का अच्छा जरिया बन सकती है। कद्दू की इस प्रजाति की मार्केटिंग में किसानों को किसी तरह की परेशानी से नहीं जूझना पड़ता है, क्योंकि पेठा मिठाई के कारोबारी इस की तैयार फसल को खेतों से ही खरीद लेते हैं।

इटखुदा गाँव के निवासी राजनारायण कटियार (37 वर्ष) बताते हैं, “कुम्हड़ा की खेती जुए के सामान होती है अगर बाजार भाव ठीक रहा तो किसान और व्यापारी दोनों को अच्छा फायदा होता है।”

वो आगे बताते हैं, “राजपुर ब्लॉक में ही हजारों बीघा कुम्हड़ा की खेती की जाती है, इसे बेचने के लिए किसान को भटकना नहीं पड़ता व्यापारी खेत से ही इसकी खरीददारी करके ले जाते हैं, किसान को जरूरत के हिसाब से एडवांस में भी व्यापारी पैसे दे देते हैं।”

कुम्हड़ा के खेत में किसान दो से तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं। पेठा बनाने में इस्तेमाल कुम्हड़ा की मांग आगरा, कानपुर और बरेली की मंडियों में बहुत ज्यादा है।

कुम्हड़ा बुवाई करने का तरीका

कुम्हड़ा की बुवाई के लिए खेत की गर्मी में गहरी जुताई कर देते हैं और गोबर पांस भी डाल देते हैं। अगैती कुम्हड़ा की खेती में खेत की पलेवा करके बुवाई करते हैं, जबकि पिछैती फसल में बारिश के बाद बुवाई शुरू कर देते हैं।

पन्द्रह हाथ का एक सीधा लकड़ी का डंडा ले लेते हैं, इस डंडे में दो-दो हाथ की दूरी पर फीता बांधकर निशान बना लेते हैं जिससे लाइन टेढ़ी न बने। दो हाथ की दूरी पर लम्बाई और चौड़ाई के अंतर पर गोबर की खाद का सीधे लाइन में गोबर की खाद घुरवा बनाते हैं जिसमे कुम्हड़े के सात से आठ बीजे गाढ़ देते हैं अगर सभी जम गए तो बाद में तीन चार पौधे छोड़कर सब उखाड़ कर फेंक दिए जाते हैं।

खेत में खरपतवार न रहे इसके लिए निराई-गुड़ाई हमेशा होती रहे, समय-समय पर बहुत कम मात्रा में खाद डाली जाती है। बुवाई ऐसे खेत में करते हैं जिसमे पानी का भराव न रहे, क्योंकि अगर बरसात में ज्यादा पानी हो गया और निकास की सुविधा नहीं है तो कुम्हड़ा सड़ने की सम्भावना ज्यादा रहती है।

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