बिहार से लखीमपुर सिंघाड़ा खरीदने आते हैं व्यापारी, यहां हर रोज बिकता है सैकड़ों क्विंटल सिंघाड़ा

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बिहार से लखीमपुर सिंघाड़ा खरीदने आते हैं व्यापारी, यहां हर रोज बिकता है सैकड़ों क्विंटल सिंघाड़ासिंघाड़ों की लगती है बड़ी मंडी।

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: विकास सिंह तोमर

ओयल (लखीमपुर)। यहां का हर एक किसान एक दिन में हजारों रुपए का सिंघाड़ा बेच देता है। यही नहीं यहां पर बिहार तक से व्यापारी सिंघाड़ा खरीदकर ट्रकों में भर कर ले जाते हैं।

20 से 25 रुपये में बेच देते हैं

लखीमपुर से लगभग 13 किमी. दूर ओयल के ढ़खवा बाज़ार में हर दिन गोरखपुर, बहराइच, गोंडा और बिहार के छपरा, सिवान जैसे कई जिलों के व्यापारी सुबह से ही डेरा जमा लेते हैं। गोरखपुर के बेलीपारा के रहने वाले योगेन्द्र कुमार (25 वर्ष) यहां महीने में एक-दो चक्कर लगा लेते हैं। योगेन्द्र बताते हैं, "मैं महीने में एक दो-बार यहां सिंघाड़ा खरीदने आता हूं। हम लोग यहां से ले जाकर अपने यहां के बाजार में बेचते हैं। यहां से चार-पांच रुपए में थोक के भाव खरीदते हैं और अपने यहां बीस-पच्चीस रुपए में बेच देते हैं।

100 से अधिक किसानों की आमदनी सिंघाड़ों से

सिंघाड़े की खेती पूरे साल होती है। उसके बाद पानी से निकालकर इसे बाजार तक पहुंचाया जाता है। ओयल के आस-पास के दर्जनों गाँवों में पांच सौ एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में सिंघाड़े की खेती होती है। यहां के सौ से भी अधिक किसानों की आमदनी सिंघाड़े से होती है।

आस-पास के कई गाँवों से आते हैं लोग

मरखपुर गाँव के किसान रामसागर हर दिन ओयल सिंघाड़ा मंडी में सिंघाड़ा बेचने आते हैं। रामसागर बताते हैं, "मैंने पांच एकड़ में सिंघाड़ा लगाया है। हर दिन पंद्रह रुपये तक सिंघाड़ा बिक जाता है। सिर्फ मैं ही नहीं, आस-पास के कई गाँव के लोग यहां मंडी में सिंघाड़ा बेचने आते हैं।"

किसानों को मिल रहा है लाभ

सिंघाड़े की खेती खासकर अब अधिक मुनाफे की खेती होती जा रही है क्योंकि इसकी मांग बढ़ रही है। सिंघाड़े का आटा व्रत में खाया जाता है और उसके दाम भी बढ़िया मिलते हैं। सूखे सिंघाड़े की कीमत 100 रूपए प्रति किग्रा से लेकर 120 रूपए तक भी पहुंच जाती है। यहां के कई किसान अब सिंघाड़े को सुखाकर भी बेचते हैं। राम सागर बताते हैं, "पहले हम लोग केवल कच्चा सिंघाड़ा बेचते थे, अब सुखाकर भी बेचते हैं। हमारे यहां कई व्यापारी ऐसे ही हैं जो सिर्फ सिंघाड़ा सुखाकर बेचकर हजारों रुपए कमा लेते हैं।"

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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