स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
विशुनपुर ( बाराबंकी)। मौसमी जोखिम के चलते किसानों के लिए कयी फसलों की परम्परागत खेती करना घाटे का सौदा साबित हो रही है। अब इससे बचने के लिए जिले के कयी किसान परम्परागत खेती से हटकर फूलों की खेती करने लगे हैं। किसानों ने इसे लेकर बहुत हद तक आशा भी व्यक्त की है कि यह उनके लिए मुनाफे की खेती साबित होगी। बाराबंकी मुख्यालय से 22 किमी उत्तर देवा ब्लॉक के दफेदारपुरवा गाँव अब फूलों की खेती के लिए जाना जाता है। इस गाँव में ग्लोडिओस, जरबेरा के साथ-साथ आजकल गेंदा के फूलों की खेती की जा रही है।
किसान मनोज वर्मा ने अपने एक बीघा के खेत में गेंदा की फसल प्रयोग के तौर पर लगा रखी है। वे बताते हैं, “हम पहले परम्परागत खेती करते थे, उसमें लागत निकालना मुश्किल था। अब हम परम्परागत खेती से हटकर सब्जियों व फूलों की खेती करते हैं। गेंदा की खेती फायदेमंद हुयी तो वे अगले साल ज्यादा भूमि में गेंदा के फूलो की खेती करेंगे।”
वहीं, विनय कुमार(40) ने बताया कि पहले हम जायद की फसल के रूप में मेंथा की खेती करते थे, लेकिन इसमें मेहनत कहीं अधिक पड़ती थी। इस बार प्रयोग के तौर पर कलकतिया गेन्दा की खेती प्रारम्भ की। प्रतिदिन इसे तोड़कर बाजार में बेचते हैं व अच्छा मुनाफा दे रही है। अगले वर्ष गेंदा की खेती व्यापक स्तर पर करेंगे।
सप्ताह में सिंचाई की होती है आवश्यकता
मनोज ने बताया, “खेत तैयार करने के बाद मेंथा की तरह पौधे की रोपाई की जाती है। रोपाई के लिए आर्डर देकर पौध कलकत्ता से मंगायी गयी। पेड़ लगने के 45 दिनों बाद फूल आना शुरू हो जाता है। गेंदा की खेती के लिए ज्यादा लागत की आवश्यकता नहीं है।” मनोज ने आगे बताया, “गेंदा की खेती में सप्ताह में एक बार पानी लगाना पड़ता है और खरपतवारनाशक दवाई का छिड़काव भी समय-समय पर करना होता है। एक बीघा में लगभग 20 से 25 कुंतल तक फूल निकल आता है। सीजन में फूल 100 से 150 रुपये के बीच बिक जाता है। लागत निकाल कर एक बीघा में 20 से 25 हजार की बचत हो जाती है।”
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गेंदा की कई किस्में हैं, लेकिन कलकतिया गेंदा उगाने से फूल अच्छा निकलता है, जिससे अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। गेंदा की फसल उगाने के बाद मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे उस खेत की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हो जाती है।
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