किसान अरहर की नर्सरी विधि से बढ़ा रहे पैदावार

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किसान अरहर की नर्सरी विधि से बढ़ा रहे पैदावारनर्सरी के जरिये किसान बढ़ा रहे हैं अरहर की पैदावार।

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: नीतू सिंह

उसका (सिद्धार्थनगर)। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अरहर की खेती का रकबा पिछले कुछ वर्षों में बहुत घट रहा है। ऐसे में उसका ब्लॉक में एनजीओ की मदद से किसानों को अरहर की खेती का नया तरीका बताया जा रहा है।

तब गैर सरकारी संगठनों ने शुरू किया प्रयास

सिद्धार्थनगर जिले में कुछ वर्षों पहले ज्यादातर किसान अरहर की खेती करते थे, लेकिन घटते उत्पादन, कीटों के प्रकोप और लम्बे फसल चक्र के कारण किसान इससे दूर हो गए। इस समस्या से निजात पाने के लिये गैर सरकारी संगठनों ने प्रयास शुरू कर दिया है।

सघनीकरण विधि से कराई जा रही खेती

जिले के उसका ब्लॉक के एक दर्जन ग्राम पंचायतों में अरहर की सघनीकरण विधि से खेती कराई जा रही है। इस विधि से अरहर के एक पेड़ से एक किलो तक दाल प्राप्त की जा सकती है। एक एकड़ मे 20 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है।

देखा-देखी दूसरे किसानों ने भी अपनाई विधि

गौरा ग्राम निवासी किसान रमेश सिंह (48) बताते हैं, "हमने दो गुणा एक मीटर पर पौधे लगाए हैं, पिछली बार भी हमने ऐसे ही अरहर लगाया था, अच्छी पैदावार भी हुई थी। इस बार भी मेरी तरफ कई किसानों ने ऐसे ही अरहर लगायी है।"

मूंगफली और मक्का जैसी फसलों के लिए भी लाभदायक

परियोजना के समन्वयक प्रदीप कुमार सिंह बताते हैं, ''पहले अरहर की नर्सरी डालने से अच्छी पौध तैयार होती है। 35 दिन की नर्सरी को पंक्तिबद्ध तरीके से खेत मे रोपा जाता है। दो मीटर की दूरी के बीच में मूंगफली व मक्का जैसी फसलों से सहफसली खेती और अधिक लाभदायक सिद्ध हो सकती है।" परियोजना में तकनीकि सहयोग कर रहे पानी संस्था के समन्वयक ज्ञान प्रकाश कहते हैं, "पानी संस्थान सिद्धार्थनगर में अरहर की खेती को लाभकारी बनाकर पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है। इसका प्रयोग सफल साबित हो रहा है।"

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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