कम लागत में ज्यादा मुनाफे के लिए करें बटेर पालन

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स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पिछले कुछ वर्षों में अंडे और मांस का कारोबार तेजी से बढ़ा है, जिसके लिए मुर्गी फार्मिंग करते हैं, जिसमें मुनाफा तो मिलता है, लेकिन बीमारियों का डर भी बना रहता है, ऐसे में बटेर पालन कर कम खर्च में ही ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।

बरेली जिले से करीब 30 किमी. दूर भोजीपुरा ब्लॉक के रामपुरा माफी में रहने वाले फखरे आलम (48 वर्ष) पिछले चार वर्षों से जापानी बटेर पालन कर रहे हैं। इससे पहले वो मुर्गीपालन कर रहे थे। फखरे बताते हैं, “हमारे पास लगभग 500 और 200 स्क्वैयर में 1200 पक्षी पाले जा रहे हैं, जिनसे प्रतिदिन 600 अंडों का उत्पादन हो रहा है। अभी इनके अंड़ों और मांस के लिए डीलर को बेचते हैं।”

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फखरे आगे बताते हैं, “इसका मांस मुर्गे की अपेक्षा ज्यादा महंगा बिकता है। इनको खिलाने पर ज्यादा खर्चा भी नहीं आता है। एक जापानी बटेर से लगभग 200-250 ग्राम दाना खिलाकर 300 ग्राम मांस मिल जाता है। सालभर में जापानी बटेर का पांच से छह बार पालन कर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।”

व्यावसायिक मुर्गी पालन, चिकन फार्मिंग के बाद बतख पालन और तीसरे स्थान पर जापानी बटेर पालन का व्यवसाय आता है। जापानी बटेर के अंडे का वजन उसके वजन का आठ प्रतिशत होता है, जबकि मुर्गी का तीन प्रतिशत ही होता है। जापानी बटेर को 70 के दशक में अमेरिका से भारत लाया गया था जो अब केंद्रीय पक्षी अनुसंधान केंद्र, इज्जत नगर, बरेली के सहयोग से व्यावसायिक रूप ले चुका है। यहां पर किसानों को इसके पालन की ट्रेनिंग दी जाती है। जापानी बटेर का चूजा भी यहीं से ले सकते हैं।

केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ एम पी सागर बताते हैं, “इनका पालन कम स्थान पर किया जा सकता है, यानि एक मुर्गी रखने के स्थान में ही 10 बटेर के बच्चे रखे जा सकते हैं। यह पांच सप्ताह में अंडे के लिए तैयार हो जाती है। मादा बटेर प्रतिवर्ष 250 से 300 अंडे देती हैं। इसको कम लागत से शुरु किया जा सकता है। हमारे संस्थान में समय-समय पर मुर्गीपालन और बटेर पालन की ट्रेनिंग दी जाती है। अभी कई पशुपालकों ने इस व्यवसाय को शुरु किया है।”

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बाजार में इसकी मांग के बारे में डॉ. सागर बताते हैं, “मुर्गें के मांस की कीमत 250 रुपए किलो है, जबकि इसके मांस की कीमत 400 रुपए किलो है। इसकी मांग बड़े-बड़े होटलों में ज्यादा है। ज्यादा कीमत और कम लागत के लिए किसान इस व्यवसाय को आसानी से शुरु कर सकता है।”

यहां से ले सकते हैं जानकारी

अगर कोई बटेर पालन शुरु करना चाहता है या कोई तकनीकी जानकारी चाहता है तो बरेली के केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान में संपर्क कर सकता है। बटेर के चूजों को भी संस्थान द्वारा खरीद सकता है। इसके अलावा बाराबंकी स्थित पशुधन प्रक्षेत्र चक गजरिया फार्म से भी चूजों को खरीद सकता है।

बटेर पालन के फायदे

  • व्यावसायिक बटेर पालन में टीकाकरण की कोई जरुरत नहीं होती है इनमें बीमारियां न के बराबर होती हैं।
  • 6 सप्ताह (42 दिनों) में अंडा उत्पादन शुरू कर देती हैं, जबकि कुक्कुट पालन (अंडा उत्पादन की मुर्गी) में 18 सप्ताह (120 दिनों) के बाद अंडा उत्पादन शुरू होता है।
  • बटेरों को खुले में नहीं पाला जा सकता है। इनका पालन बंद जगह पर किया जाता है। क्योंकि यह बहुत तेजी से उड़ने वाला पक्षी है। ये तीन सप्ताह में बाजार में बेचने के योग्य हो जाते हैं।
  • अंडा उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 18 से 20 ग्राम दाना खाती है जबकि मांस उत्पादन करने वाली एक बटेर एक दिन में 25 से 28 ग्राम दाना खाती है।
  • पहले दो सप्ताह में इनके पालन में बहुत ध्यान देना होता है जैसे कि 24 घंटे रोशनी, उचित तापमान, बंद कमरा तथा दाना पानी इत्यादि। तीसरे सप्ताह में यह बिकने लायक तैयार हो जाती है।

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