किसान पहचानें अपनी ताकत, दूसरों पर छोड़े आत्मनिर्भरता

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किसान पहचानें अपनी ताकत, दूसरों पर छोड़े आत्मनिर्भरताफोटो: महेंद्र पांडेय।

स्वयं प्रोजेक्ट

आज बदलते परिवेश एवं प्रतिस्पर्धा के युग में हमारे किसानों के समक्ष बहुत सारी चुनौतियां हैं, जिनसे हमारा किसान स्वयं संघर्ष कर रहा है। मगर समस्या चाहे कितनी भी गम्भीर क्यों न हो, उसका उपाय जरूर होता है। जरूरत है हमें सारगर्भित अध्ययन, चिन्तन एवं मनन की।

किसानों की सबसे बड़ी समस्या

किसानों की सबसे बड़ी समस्या है, उनकी लागत में वृद्धि एवं उपज का सही मूल्य न मिल पाना अर्थात आमदनी में कमी। इसके अलग-अलग पहलुओं से कई कारण हैं, किन्तु मेरे मन में यह बात है कि इस समस्या का प्रमुख कारण है खेती में प्रयोग होने वाले समस्त चीजों का किसानों द्वारा दूसरों पर आत्मनिर्भर हो जाना। जैसे पूर्व काल में बीज, खाद, दवा, यन्त्र, स्वतः श्रम में किसानों का स्वयं नियन्त्रण रखना अर्थात बीज स्वतः सुरक्षित रखना, खाद हेतु गोबर की खाद, केचुआ खाद, हरी खाद, नाडेप कम्पोस्ट, सींग की खाद इत्यादि का उपयोग करना।

अब किसान की कमान मार्केट के हाथों में

कीट एवं बीमारियों से बचने के लिए दवाओं में नीम, करन्ज, शरीफा, धतूरा, मदार, लहसुन, हींग, गोमूत्र, मट्ठा इत्यादि का प्रयोग आदि। यन्त्रों में देसी बैल, सिंचाईं हेतु रहट एवं लेबर व्यय कम करने हेतु स्वयं का श्रम। लेकिन आज के दौर में किसान बीज, खाद, दवा, यन्त्र एवं लेबर हेतु मार्केट पर निर्भर हो गया है। यानि किसान की कमान मार्केट के हाथों में है, जबकि मार्केट की कमान किसान के हाथों से कोसों दूर है।

जरूरत है सिर्फ जानकारी की

यदि हमारी कृषि अब दूसरों के अधीन हो चली है। अब मार्केट में बैठा व्यक्ति जैसा चाहेगा, वह मनमाना दाम किसान से वसूल रहा है, क्योंकि हम उस पर निर्भर हैं। यदि कोई कम्पनी कोई सामान तैयार करती है तो वह उसका मूल्य भी तय करती है, किन्तु किसानों के सन्दर्भ मे ऐसा नहीं है। सीधे शब्दों में यह कहें कि आज छोटे किसान लाचार, असहाय होकर मूकदर्शक हो गये हैं। मार्केट इसलिए होती है कि हम जिन चीजों को बना नहीं सकते, उसे खरीदने के लिए हम मार्केट जाएं तो बात समझ में आती है। उदाहरण के तौर पर बल्ब, मोबाइल, टीवी, मशीन आदि। किन्तु चिन्ता इस बात की है कि कृषि में लगने वाली ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिसे किसान स्वयं न बना सके, जरूरत है सिर्फ जानकारी की एवं दृढ़ निश्चय की।

छोटे-छोटे किसानों के पास हो अपना बीज

बीज कृषि की कुंजी है। बीज नहीं तो कुछ भी नहीं। चाहे हम कितने ही संसाधन क्यों न रख लें, लेकिन हमारे पास स्वयं का बीज नहीं तो हमें गुलामी से कोई नहीं बचा सकता। अर्थात देश में दूसरी हरित क्रान्ति तभी आ सकती है, जब हमारे छोटे-छोटे किसानों के पास अपना उन्नत बीज हो जिसे वह स्वयं तैयार कर सकें। देश में एक ऐसे अभियान की जरूरत है कि जैसे हर व्यक्ति का अपना बैंक खाता अनिवार्य है, ठीक उसी प्रकार हर किसान के पास चाहे वो जो भी फसल लेना चाहे, उसका फाउण्डेशन बीज उसे आसानी से उपलब्ध हो सके।

ताकि बीजों को कर सके संरक्षित

हरित क्रान्ति के समय जब देश में अधिक अन्य की आवश्यकता पड़ी तो हाईब्रिड प्रजातियों एवं रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग से हमें सफलता मिली। किन्तु आज हम खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हैं और हम निर्यात भी कर रहे हैं। अब हमें गुणवत्तायुक्त उपज की आवश्यकता है। हाईब्रिड बीजों से जहां हम कम जमीन से अधिक उपज प्राप्त करते हैं, वहीं दूसरी ओर हमें पौष्टिक गुणवत्तायुक्त एवं स्थानीय वातावरण को सहन करने वाली प्रजातियों के प्रयोगों पर जोर देना होगा। यदि हमारे किसान के पास पांच बीघा जमीन है, उसमें वह चार बीघा में चाहे हाईब्रिड बो ले, किन्तु उसे पांचवें बीघे में देशी उन्नति किस्म एवं उच्च गुणवत्ता वाले फाउण्डेशन बीज बोने की आवश्यकता है ताकि वह 5वें बीघे से बीज को अगले वर्ष के लिए संरक्षित कर सके। इन बीजों को संरक्षित करने से उसे समय पर बोआई करने में सफलता प्राप्त होगी। जिससे वह समय एवं धन की बचत कर सकता है। लेकिन यदि किसान केवल हाईब्रिड बीज का प्रयोग कर रहा है और अपना बीज समाप्त कर दिया तो निश्चित ही उसे मार्केट में हो रही उथल-पुथल एवं बिचौलियों से कोई नहीं बचा सकता।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)

ओपिनियन पीस: डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव, कृषि विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र, कटिया, सीतापुर।

डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव, कृषि विशेषज्ञ।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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