अजय यादव, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
उन्नाव। गंगा की सहायक नदी में शामिल सई नदी बुरे दौर से गुजर रही है। नदी पूरी तरह से सूख चुकी है। वहीं नदी के तट के आसपास बसे कस्बों का गंदा पानी नालियों के सहारे नदी में गिर रहा है, जिससे नदी नाले का रूप ले चुकी है। नदियों के संरक्षण की ओर ठोस कदम न उठाने का ही नतीजा है कि नदियों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। जिले में गंगा की सहायक नदियों में शामिल सई नदी भी इसी कड़ी में शामिल हो चुकी है।
एक दशक पूर्व तक सई नदी ही मवेशियों के साथ ही आम आदमी की प्यास बुझाने का स्रोत हुआ करती थी, लेकिन कस्बों से आने वाले नालों का पानी सीधे सई नदी में गिरने लगा, जिससे नदी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है। मोहान कस्बे में ही रहने वाले घनश्याम (73 वर्ष) बताते हैं, “पूर्व में नदी का पानी एक अजब सी ताजगी का एहसास कराता था। बारिश के मौसम में नदी लबालब पानी से भर जाती थी। मवेशी यहां पानी पीते थे। दूरदराज से आने वाले लोग भी नदी के ही पानी से अपनी प्यास बुझाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा।”
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वहीं कुछ वर्ष पहले तक नदी के किनारे रहने वाले किसान अपनी फसल की सिंचाई नदी के पानी से करते थे, लेकिन अब उनके सामने सिंचाई का संकट खड़ा हो गया है। नदी में सिर्फ नाले का पानी ही बहकर आता है। सिंचाई के लिए किसानों को काफी रुपया खर्च करना पड़ रहा है। जिला मुख्यालय से पश्चिम दिशा में लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर मोहान कस्बे में रहने वाले श्यामसुंदर (28 वर्ष) बताते हैं, “सई नदी में अब नाले का ही पानी दिखाई देता है। नदी अब नाले का रूप ले चुकी है।”
मोहान के ही रहने वाले किसान राघवेंद्र (63 वर्ष) बताते हैं, “एक दशक पहले तक नदी के तट के किनारे के खेतों में नदी के पानी से ही सिंचाई होती थी। पहले एक वर्ष तक नदी में पानी रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।” वहीं इसी क्षेत्र के रहने वाले हरिशंकर (80 वर्ष) बताते हैं, “नदी में पानी आने से फसल की पैदावार भी खूब होती थी, लेकिन अब नदी में पानी नहीं है। अब खुद ही पानी का प्रबंध करना पड़ता है।” ईओ मुकेश कुमार निगम ने कहा मेरा प्रयास है कि नदी में नाले का पानी न गिरने पाए। इसके लिए लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है।
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