मंदसौर के इस किसान ने पेश की मिसाल

Neetu SinghNeetu Singh   21 Dec 2017 3:55 PM GMT

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मंदसौर के इस किसान ने पेश की मिसालजैविक खेती करने वाले गोवर्धनलाल धनौतिया

भोपाल। मध्य प्रदेश मंदसौर इलाका पिछले महीनों में किसान आंदोलन को लेकर चर्चा में रहा था, किसान सड़क पर उतरे थे, कई किसानों की जान गई थी। लेकिन इसी इलाके में कई किसान ऐसे हैं जो अपनी काबिलियत और सूझबूझ से दूसरों के सामने मिसाल बन रहे हैं।

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिला मुख्यालय से 72 किमी दूर सुवासरा तहसील के टोकड़ा गाँव में रहने वाले गोवर्धन लाल धनौतिया (63 वर्ष) ने अपने नौ बीघे खेत में पूरी तरह से जैविक खेती करना शुरू किया।

गोवर्धनलाल धनौतिया फोन पर बताते हैं, “जैविक ढंग से खेती करने पर लागत तो कम आती ही है, साथ ही हमारी फसल देसी और शुद्ध होने की वजह से बाजार में तीन गुना कीमत पर बिकती है। पिछले साल आलू का भाव नहीं मिला तो चिप्स बनाकर बेचे जिससे अच्छा मुनाफा हुआ।” गोवर्धनलाल ने अपनी जैविक भूमि में 400 पपीता और 550 संतरे के पेड़ लगाये हैं, इसी के नीचे हरी सब्जियां बो लेते हैं जो बाजार में इन्हें अच्छा मुनाफा दिलाती हैं।

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आज गोवर्धन के पास अपना खुद का बायोगैस, नाडेप, वर्मीकंपोस्ट, ड्रिप स्प्रिंक्लर्स, कूप रिचार्ज,गो पालन है, जिससे इनकी बाजार पर निर्भरता कम हुई है। जब बाजार में इन्हें आलू और पपीता का भाव नहीं मिलता तो ये आलू के चिप्स और पपीते से गुलाब कतरी बनाकर बेचते हैं। लम्बे समय से जैविक खेती कर रहे गोवर्धनलाल धनौतिया ने अपने अनुभव साझा किए।

वह बताते हैं, “सरकार की कृषि को लेकर जितनी भी विभागीय जानकारियां आती हैं, उसे अपनाने के साथ-साथ उनका प्रचार-प्रसार भी करते हैं। कई संस्थानों में जाना, वहां से सीखकर आना और अपनी खेती में अपनाना हमारा प्रयास रहता है।”इनके इन्ही प्रयासों की वजह से खेती में इस्तेमाल होने वाली सारी चीजें एकत्रित कर ली हैं, जिनकी कृषि के दौरान जरूरत पड़ती है। आज आसपास के क्षेत्र में इनकी खेती को माडल फॉर्म के रूप में जाना जाता है।

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अपने खेतों को बनाया मॉडल फॉर्म

गोवर्धनलाल धनौतिया ने अपने खेतों को मॉडल फॉर्म के रूप में विकसित किया है। गोवर्धनलाल बताते हैं, “खेतों से निकलने वाले खरपतवार को जलाने की बजाय उसकी वर्मी कम्पोस्ट बनाते हैं, केंचुवा खाद का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, पानी की कमी न हो इसके लिए वाटर रिचार्ज बनाया हैं, मेड़बंदी और कुएं में बरसात के पानी का संरक्षण करते हैं, फुआरा सिंचाई का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पानी की बर्बादी न हो।”

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