छह वर्षों में खंडहर बन गया स्वास्थ्य उपकेंद्र, अब पाथे जाते हैं कंडे, रखा जाता है भूसा

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छह वर्षों में खंडहर बन गया स्वास्थ्य उपकेंद्र, अब पाथे जाते हैं कंडे, रखा जाता है भूसासीतापुर जिले के रामपुर मथुरा ब्लॉक के मझिगवां गाँव में बने स्वास्थ्य उपकेंद्र का हाल(

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: पवन शर्मा

रामपुर मथुरा (सीतापुर)। गाँव में छह वर्ष पहले जब स्वास्थ्य उपकेंद्र बनाया गया, तब लोगों में इस बात की खुशी थी कि कई किमी. दूर ब्लॉक के स्वास्थ्य केन्द्र पर इलाज के लिए नहीं जाना पड़ेगा, मगर बड़ी बात यह है कि आज तक यह स्वास्थ्य केन्द्र खुला ही नहीं।

पाथ रही कंडे, रखा है भूसा

सीतापुर जिले के रामपुर मथुरा ब्लॉक के मझिगवां गाँव में बना स्वास्थ्य केन्द्र देख रेख के आभाव में खंडहर हो गया है। अब ये भवन ग्रामीण महिलाओं के कंडे पाथने और भूसा रखने के काम आ रहा है।

क्या कहते हैं ग्रामीण

गाँव के राजमल वर्मा कहते हैं, "जब से ये उपस्वास्थ्य केंद्र बना है तब से कोई भी डॉक्टर यहां दर्शन देने नहीँ आया है, न ही कोई एएनएम आयी हैं। थोड़े समय बाद लोग अपने जानवर और महिलाएं गोबर के कंडे पाथने के लिए अपना सुरक्षित साधन बना लिया है

ताकि ग्रामीणों को मिल सके इलाज

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने को लेकर सरकार ग्रामीण उपस्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण करवाती है। इन केंद्रों पर पल्स पोलियो या टीकाकरण अभियान के अलावा ग्रामीणों को दवाइयां मिलती हैं। इतना ही नहीं, बच्चों का टीकाकरण व गर्भवती महिलाओं का गाँव में ही नियमित चेकअप कराने के मकसद से लाखों की लागत से स्वास्थ्य उपकेंद्र बनाए गए हैं। इन केंद्रों पर स्वास्थ्य कार्यकत्री के माध्यम से सेवाएं दी जाती हैं। सरकारी आदेश के अनुसार, पांच हज़ार से ज़्यादा आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज के लिए स्वास्थ्य उपकेंद्रों को खोला जाए और इसमें जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा कर्मचारियों को भी तैनात किया जाए। इसके बावजूद गाँवों में स्थापित किए गए अधिकांश उपकेंद्र बंद हालत में पड़े हैं।

जाना पड़ता है कई किलोमीटर दूर

अमर सिंह बताते हैं, "केंद्र कभी खुला ही नहीं, जिससे गाँव के लोगों को बीमार होने पर कई किलोमीटर दूर रामपुर मथुरा सामुदायिक स्वास्थ्य जाना पड़ता है।" वहीं, कई गाँवों के लोग गाँव के झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करवाने को मजबूर हैं। यहां तक ग्रामीणों का कहना है कि केंद्र पर स्वास्थ्य कार्यकत्री कभी कभार ही आती है, ज़्यादातर वह दूसरी जगह पर बैठकर चली जाती हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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