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सरकारें विदेशी नस्लों के पीछे भागती रहीं, हज़ारों देशी गायें मरने के लिए छोड़ दी गईं 

देसी नस्ल की गायें

आपके शहर की सड़कों से लेकर बुंदेलखंड के वीरानों तक अन्ना प्रथा के तहत घूम रहीं हज़ारों छुट्टा गायें न तस्करों द्वारा बूचड़खाने पहुंचाई जातीं और न प्लास्टिक खाकर मरतीं, अगर वर्षों से सरकारों ने विदेशी नस्लों का आकर्षण छोड़कर देशी नस्लों के सुधार पर ध्यान दिया होता।

भारत में देशी नस्ल की गायों को एक उम्र के बाद मरने के लिए छोड़ दिया जाता है जबकि विदेशों में हमारे यहां से गईं स्वदेशी नस्ल की गायें रिकार्ड दुग्ध उत्पादन कर रही हैं। गिरि नस्ल की गाय ने कुछ वर्षों पहले ब्राजील में 62 लीटर दुग्ध उत्पादन करके रिकॉर्ड बनाया था। भारत से गई गिरि गाय को ब्राजील के किसान ने वैज्ञानिक सलाह से पाला-पोसा था। जबकि कहा जाता है भारत में सबसे ज्यादा गैर उपयोगी पशु हैं।

देशी गायों पर नहीं दिया गया उचित ध्यान।

गाय-भैंसों की देखभाल में उपयोगी टोल फ्री नंबर की पशुपालकों को जानकारी ही नहीं

भारत में पाई जाने वाली गिर और साहीवाल समेत कई नस्लें बहुत कम देखरेख और विपरित वातारण में भी बेहतर दूध देती हैं। लेकिन एक दौर में सरकार ने इन्हें तवज्जों न देकर विदेशी नस्ल की गायों को तवज्जो दिया, जिनमें से ज्यादातर यहां सफल नहीं हो पाईं और देशी गायों की नस्लें भी संकर होकर बिगड़ती होती गईं। बुंदेलखंड के अन्ना पशु (छुट्टा जानवर) उसका बड़ा उदाहरण हैं।

संकर नस्ल की गायों का दुग्ध उत्पादन तापमान बढ़ने पर कम हो जाता है। स्वदेशी नस्ल की गायें विपरीत मौसमी परिस्थितियों को झेलने में अधिक सक्षम होती हैं। साहीवाल प्रजाति की गाय एक उदाहरण है, उसे मुर्रा नस्ल की भैंस की तरह देश के किसी भी राज्य में पाला जा सकता है। —डॉ. एके चक्रवर्ती, वरिष्ठ वैज्ञानिक, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

“संकर नस्ल की गायों का दुग्ध उत्पादन तापमान बढ़ने पर कम हो जाता है। स्वदेशी नस्ल की गायें विपरीत मौसमी परिस्थितियों को झेलने में अधिक सक्षम होती हैं,” डॉ. एके चक्रवर्ती, वरिष्ठ वैज्ञानिक राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने गाँव कनेक्शन को बताया। वो आगे कहते हैं “साहीवाल प्रजाति की गाय एक उदाहरण है कि इस स्वदेशी नस्ल की गाय को देश के किसी भी कोने में पाला जा सकता है। इसी तरह मुर्रा प्रजाति की भैंस हर राज्य में पाली जा सकती है।”

भारत ने वर्ष 2015-16 में कुल 16 करोड़ लीटर दुग्ध उत्पादन किया। देश में 51 प्रतिशत उत्पादन भैंसों से, 20 प्रतिशत देशी नस्ल की गायों से, 25 प्रतिशत विदेशी नस्ल की गायों से और शेष छोटे जानवरों से उत्पादन होता है। देश में डेयरी उद्योग से छह करोड़ किसान अपनी आजीविका चला रहे हैं।

भारत ने वर्ष 2015-16 में कुल 16 करोड़ लीटर दुग्ध उत्पादन किया। देश में 51 प्रतिशत उत्पादन भैंसों से, 20 प्रतिशत देशी नस्ल की गायों से, 25 प्रतिशत विदेशी नस्ल की गायों से और शेष छोटे जानवरों से उत्पादन होता है। देश में डेयरी उद्योग से छह करोड़ किसान अपनी आजीविका चला रहे हैं।

देशी नस्ल की गायों पर शोध न हो पाने के कारण डॉ. चक्रवर्ती कहते हैं, “स्वदेशी नस्लों के बारे में शोध भी अभी तक नहीं हुआ क्योंकि इतने बड़े देश में इतने ज़रूरी विषयों के बीच शोध का पैसा खप जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश में स्वदेशी नस्लों के विषय में शोध पर काम शुरू हुआ है। सरकारें भी गोकुल मिशन, ब्रीडिंग की राष्ट्रीय योजना और राष्ट्रीय डेयरी प्लान जैसी योजनाओं में स्वदेशी नस्लों को ही बढ़ावा दे रही हैं।”

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पिछले कुछ वर्षों में देश में स्वदेशी नस्लों के विषय में शोध पर काम शुरू हुआ है। सरकारें भी गोकुल मिशन, ब्रीडिंग की राष्ट्रीय योजना और राष्ट्रीय डेयरी प्लान जैसी योजनाओं में स्वदेशी नस्लों को ही बढ़ावा दे रही हैं।

दुग्ध उत्पादन में यूपी अव्वल

देश में उत्तर प्रदेश दुग्ध उत्पादन में तो नंबर वन है, पर अभी भी प्रति गाय-भैंस दुग्ध उत्पादकता काफी कम है। प्रदेश में गायों का प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन औसतन ढाई लीटर है और भैंसों का चार लीटर। जबकि विदेशों में गायों का औसत दुग्ध उत्पादन 40 लीटर होता है।

देसी नस्ल की गायों के सुधार के लिए यूपी सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में डॉ. बीबीएस यादव बताते हैं, “सरकार द्वारा वर्ष 2013-14 में बरेली के मुरिया मुकरम में लगभग 50 करोड़ की लागत से पशु उत्थान केंद्र खोला गया था। अभी भी काम चल रहा है। जिसका काम आने वाले अप्रैल में खत्म हो जाएगा। यहां थारपारकर, साहीवाल, हरियाणा और गंगातीरी के उच्च गुणवत्ता के सांड़ों को लाया जाएगा। क्योंकि देसी नस्लों के लिए अच्छे सांड़ होना चाहिए। जो अभी नहीं है।”

पशुपालक को नहीं जाना पड़ेगा अस्पताल घर बैठे ही जान सकेंगे गाय-भैंस गर्भवती है या नहीं

30 करोड़ गाय-भैंसे कम आय वाले परिवारों के पास

केंद्रीय पशुपालन विभाग के अनुसार देश की 30 करोड़ गाय-भैंसों में से लगभग 70 प्रतिशत बहुत कम आय वाले परिवार के पास है, देश के दुग्ध उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत इन्हीं छोटे परिवारों से आता है, जो विदेशी नस्ल की गायों को न तो खरीद पाते हैं और न ही उनकी देखभाल पर आने वाला खर्च उठा सकते हैं। इसलिए बढ़ती खपत से निपटने के लिए देसी नस्लों का सुधार व विकास ही एक मात्र उपाय है। लखनऊ के पशु विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिंह बताते हैं, “विदेशी गायों में देसी गायों की अपेक्षा खर्च ज्यादा है, साथ ही इनकी देखभाल में थोड़ी भी चूक हो तो पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। क्योंकि इनको बीमारियां जल्दी होती हैं। ज्यादा दुग्ध उत्पादन के लिए इन विदेशी गायों को पशुपालक पाल तो रहे हैं लेकिन उनसे इतना कमाई नहीं कर पा रहे।”

विदेशी गायों में देसी गायों की अपेक्षा खर्च ज्यादा है, साथ ही इनकी देखभाल ज्यादा करनी होती है, इनको बीमारियां जल्दी होती हैं। विदेशी गायों को पाल तो रहे हैं लेकिन उनसे इतना कमाई नहीं कर पा रहे।

डॉ. आरएस सिंह, पशु विशेषज्ञ, लखऩऊ

यूपी में 5043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र

यूपी पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 5043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र हैं। सरकारी अस्पताल में पशुओं को गर्भित कराने के लिए 30 रुपए का खर्च आता है, वहीं प्राइवेट सेंटरों में 200 रुपए। फिर भी पशुपालक कृत्रिम गर्भाधान (एआई) प्राइवेट में कराते हैं।

डॉ. बीबीएस सिंह बताते हैं, “हमारे केंद्रों की स्थिति काफी बदतर है, ऐसे में पशुपालक को सुविधा देने के लिए पशुमित्र घर-घर जाकर एआई करते हैं, जिसके लिए उनको तीन लीटर का कन्टेनर भी दिया हुआ है।” डॉ. यादव आगे बताते हैं, “सरकार द्वारा पहले खेती का बजट मिलता था, उसी में कुछ हिस्सा पशुधन को मिल जाता था, पर अब अलग से बजट आता है तो काम हो रहा है। बुंदेलखंड में भी अन्ना प्रथा उन्मूलन के लिए चित्रकूट, झांसी में उच्च गुणवत्ता वाले सांड़ को लाया गया है और कुछ ग्राम सभाओं में बांटा भी गया है।”

नोट- ये ख़बर मूलरुप से 2016 में गांव कनेक्शन साप्ताहिक में प्रकाशिक की गई थी।

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