दवाओं में कमीशन का खेल बढ़ा रहा दर्द 

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दवाओं में कमीशन का खेल बढ़ा रहा दर्द साभार: इंटरनेट 

तरुण अग्रवाल/स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

दौराला (मेरठ)। मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के मकसद से केन्द्र सरकार ने डॉक्टर्स को जेनेरिक दवा लिखने के आदेश दिए थे, लेकिन कमीशन और विदेशी टूर डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं नहीं लिखने देते। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, यदि डॉक्टर्स जेनेरिक दवाएं लिखने लगें तो मरीज को दस गुना तक सस्ता इलाज मिलेगा, लेकिन प्राइवेट तो क्या सरकारी डॉक्टर्स भी जेनेरिक दवा लिखने तक की जहमत नहीं उठाते।

क्यों सस्ती होती हैं जेनेरिक दवाएं

जेनेरिक दवाओं के मूल्य निर्धारण में सरकार का अंकुश होता है, जबकि पेटेंट दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं। इसलिए वे महंगी होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि डॉक्टर मरीज को जेनेरिक दवाओं की सलाह देने लगें तो सिर्फ धनी देशों में चिकित्सा व्यय 70 फीसदी तक की कम हो जाएगा। वहीं गरीब देशों के चिकित्सा व्यय में यह कमी और भी ज्यादा होगी। कई बार तो ब्राडेंड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में 90 फीसदी तक फर्क होता है। जेनेरिक दवाएं बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जाती हैं।

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ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती गुणवत्ता

जानकार डॉ. रवि राणा बताते हैं, “इंटरनेशनल मानकों से बनी जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती। जेनेरिक दवाओं को बाजार में लाने का लाइसेंस मिलने से पहले गुणवत्ता मानकों की सभी सख्त प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। दूसरी तरफ दवा कंपनी ब्रांडेड दवा से मोटा मुनाफा कमाती हैं। यही वजह है कि डॉक्टर जेनेरिक दवाई लिखते ही नहीं है। क्योंकि उनकी दवा कंपनियों द्वारा मिलने वाली सेवाएं बंद हो जाएंगी।”

ये होती हैं जेनरिक दवाएं

मेडिकल कालेज में कार्यरत डॉ. टीवीएस आर्य बताते हैं, “किसी एक बीमारी के लिए तमाम शोधों के बाद एक रासायनिक यौगिक की विशेष दवा के रूप में देने की संस्तुति की जाती है। इस यौगिक को अलग-अलग कंपनियां अलग-अलग नामों से बाजार में बेचती है। जेनेरिक दवाओं का नाम उसमें उपस्थित सक्रिय यौगिक के नाम के आधार पर एक विशेषज्ञ समिति निर्धारित करती है। किसी भी दवा का जेनेरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है। आपकी किसी भी बीमारी के लिए डॉक्टर्स जो दवा लिखते हैं, उसी दवा के साल्ट वाली जेनेरिक दवाएं उससे काफी कम कीमत पर आपको मिल सकती हैं।”

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मेरठ में जेनेरिक दवाओं का कोई सरकारी स्टोर नहीं है। एक प्राइवेट स्टोर कंकरखेड़ा में बताया जा रहा है। यदि सरकार सख्त हो तो गरीब को सस्ता इलाज मिल सकता है। क्योंकि सख्ती के बाद ही डॉक्टर जेनेरिक दवाएं लिखने को मजबूर होंगे।
डॉ. राजकुमार चौधरी, सीएमओ

ये होता है अंतर

अगर ब्रांडेड दवा की 14 गोलियों का एक पत्ता 786 रुपए का है, तो एक गोली की कीमत करीत 56 रुपए हुई। इसी साल्ट की जेनेरिक दवा की दस गोलियों का पत्ता सिर्फ 56 रुपए में मिल जाएगा। यानी एक गोली की कीमत लगभग साढ़े पांच रुपए हुई। वहीं किडनी, यूरिन बर्न, दिल संबंधी, न्यूरोलॉजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों में यह अंतर और ज्यादा हो सकता है।

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