स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
सोनभद्र। कल कारखानों और बिजली प्लांट से निकलने वाले कचरे को सीधे नदियों में बहाया जा रहा है, जिससे नदी के साथ-साथ पूरा वातावरण प्रदूषित हो रहा है। एनजीटी की कोर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिदिन 21,500 मेगा वाट बिजली का उत्पादन हो रहा है और इसके लिए प्रतिदिन 3,26,000 टन कोयला जलाया जा रहा है। कोयला जलाने के बाद निकलने वाले 35 फ़ीसदी राखड़ को रिहंद जलाशय में छोड़ा जा रहा है, जिससे पानी दूषित हो रहा है और लोगों को कई तरह की बीमारियां हो रही हैं।
वहीं अनपरा में लैंको सहित अन्य तीन इकाइयों की राख भी बेलवादह जलाशय में डाली जा रही है। वहीं ओबरा पावर की राख रेणुकानदी के माध्यम से सोन नदी होते हुए गंगा नदी में मिल जाती है जो बेहद खतरनाक है।
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वर्ष 2014 में समाजसेवी जगत नारायण विश्वकर्मा ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर जनहित याचिका के माध्यम से एनजीटी का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने डॉ. तपन चक्रवर्ती की अध्यक्षता में हाइप्रोफाइल कमेटी का गठन कर क्षेत्र में जांच कराई, जिसने सुझाव दिया कि यहां के चिकित्सकों को ट्रेनिंग दी जाए कि यहां के प्रदूषण सम्बंधित रोगों की पहचान कर सकें। एयर मॉनीटरिंग के जरिए वायु प्रदूषण की जांच हो।
इसके पहले न्यायालय रिहंद जलाशय में राखड़ न छोड़ने का आदेश दे चुका है अब तक के कुल 51 गाँव में आरो प्लांट जरूर लगाए गए हैं, लेकिन याचिकाकर्ता ने 90 गाँव की सूची सौंपी थी, जबकि जिला प्रशासन द्वारा सभी गाँव को शामिल नहीं किया गया। याचिकाकर्ता जगत विश्वकर्मा ने मांग की है कि प्रदूषण वाले सभी गाँवों में आरो प्लांट के साथ स्वास्थ्य और कृषि की बर्बादी का मुआवजा दिया जाए।
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क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी गिरीश चंद्र वर्मा ने बताया, संबंधित कम्पनियों को नोटिस जारी किया गया था। यदि सुधार नहीं करते हैं तो उन कंपनियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
जिलाधिकारी प्रमोद कुमार उपाध्याय ने बताया, जिन गाँव में आरो प्लान्ट नहीं लगे हैं उस गाँव में जांच कर लगवाया जाएगा और ऐसे गंभीर समस्याओं पर विचार कर कंपनियों पर सख्ती की जाएगी।
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