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पिता की मौत से नहीं टूटे हौंसले, बस कंडक्टर बन पेश की मिशाल

उत्तर प्रदेश परिवहन निगम

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

औरैया। पिता का साया उठने के बाद पांच बहनों में तीसरे नंबर की गजाला ने किसी भाई के न होते हुए हिम्मत नहीं हारी। बीए पास गजाला रोडवेज डिपो में परिचालक के पद पर तैनात होकर समस्याओं और समाज की परवाह किए बगैर खुद मुकाम बनाते हुए परिवार की सहारा बनीं।

इटावा शहर के मेाहल्ला कटरा कुदरत खान की रहने वाली गजाला परवीन (26वर्ष) के सिर से पिता का साया उठे हुए सात साल से अधिक का समय हो गया है। गजाला परवीन पांच बहनों में तीसरे नंबर की हैं। दो बहनों की शादी हो चुकी है। गजाला परवीन का कोई कोई भाई नहीं है।

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बीए पास गजाला ने अपनी मां समीम जहां से मार्ग दर्शन लेकर नौकरी करने के लिए आवेदन करने शुरू कर दिए। साल 2015 में बस परिचालक के पद पर आवेदन किया और 2016 में परिचालक के पद पर चयन हो गया। जनवरी 2017 से डयूटी ज्वाइन कर इटावा से कानपुर जाने वाली रोडवेज बस पर चल रही है।

गजाला का कहना है, “स्त्री होकर बस परिचालक की नौकरी करनी बहुत कठिन है। फिर भी संघर्षों का सामना करते हुए अपने परिवार का सहारा बनने के लिए दिन और रात की परवाह नहीं करती है। गजाला परवीन दूसरी लड़कियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी हैं। पिता का साया सिर से उठने के बाद जो लोग गजाला की हंसी उड़ाते थे आज वही लोग तारीफ करते हैं।

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फब्तियों और चुनौतियों का किया सामना

गजाला परवीन बताती हैं, “जब वह नौकरी के लिए घर से निकली तो लोगों ने बहुत फब्तियां कसी। एक कुंआरी लड़की के सामने नौकरी करने पर बहुत सारी समस्याएं होती हैं,लेकिन सबका का सामना करते हुए पीछे मुड़कर नहीं देखा। खुद का मुकाम बनाया। फब्तियां कसने वाले लोग आज कहते हैं गजाला परवीन की बस से चलो पैसे भी नहीं होंगे तो वो खुद दे देंगी।”

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