अरविन्द्र सिंह परमार/स्वयं प्रोजेक्ट
महरौनी(ललितपुर)। पिछले इक्कयासी वर्षों से प्रतिवर्ष होने वाली इस रामलीला की तरफ दर्शकों का रुझान बढ़ता ही जा रहा है, रामलीला समिति हर वर्ष कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करती है, जिससे दर्शकों का रुझान बना रहे।
रामलीला प्रारम्भ होने के एक माह पहले ही कलाकार मेहनत से रिहर्सल करते हैं, जिनकी मेहनत स्टेज पर रामलीला के पात्रों में दिखती है। रामलीला समिति में ज्यादातर स्थानीय कलाकार किरदारों को बखूबी करते हैं, पिछले 81 वर्षो से यहाँ की रामलीला जीवन्त है। महरौनी के संजय पांडे देश के कवि सम्मेलनों में अपनी छाव छोड़ते हैं, रामलीला प्रारम्भ से संजय सभी कार्यक्रम छोडकर रामलीला में समय देते हैं। कवि संजय पांडेय बताते हैं, “63 कलाकार रामलीला का मंचन करते हैं। हर वर्ष रामलीला नये बदलाव की ओर अग्रसर हैं, पहले स्वयं का मंच नही था, पर अब श्री रामयज्ञ कीर्तन मंडली के पास स्वयं का स्थाई मंच और बिल्डिंग हैं और वो लोग रामलीला को एक महोत्सव के रूप में मनाते हैं।
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वो आगे बताते हैं “समिति किसी से चंदा नही लेती, 70 प्रतिशत कलाकार से आर्थिक सहयोग मिलता हैं,जिसमें 30 प्रतिशत आरती के माध्यम से है, मदद कही से नहीं हैं! इसी से ही खर्च निकालना पड़ता है। पहले संसाधन भले ही कम थे, लेकिन हजारों दर्शकों के आनन्द में कभी कमी नहीं थी। कलाकारों को पैसा नहीं देना पड़ता, कलाकार आर्थिक सहयोग रामलीला में करते हैं।”
पांडे मे बताया, “आधुनिक समय के हिसाब से बदलाव जरूरी हैं, पहले के दौर में कम संसाधन में लीला के अलग मजे थे, स्वयं के संसाधन हैं, अब भी मजा वही हैं, उत्साह व जज्बा ज्यों का त्यों हैं।”
64 कलाकार, निःशुल्क निभाते हैं, किरदार
किरदार बाहर से नही आते, सभी स्थानीय लोग हैं! आजादी के पहले कि सांस्कृतिक परम्परा को समिति निरंतर चला रही हैं, जो हजारों दर्शकों का आकर्षण का केन्द्र हैं। सबसे बडी बात यह हैं कि सभी स्थानीय कलाकार निःशुल्क अपना किरदार निभाते हैं। 7 से 8 कलाकार विगत 40 वर्षों बड़े पात्रों को करते हैं।
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युवा पीढ़ी को आगे लाने की कोशिश
रामलीला को आगे बढ़ाना हैं तो नयी पीढ़ी की जरूरत पढेगी, नगर छोटे-बड़े कार्यक्रमों, प्रतिभाशाली बालक जिनमें प्रतिभा दिखती हैं। ऐसे चहरे रामलीला किरदार के रूप में मिलते हैं। 27 वर्षो से काम कर रहे ह्रदेश गोस्वामी बताते हैं “ऐसे बालकों के अभिभावकों से बात कर, उनकी सहमति मिलने पर रामलीला रियसल में मौका देते हैं, तैयार होने पर वह रामलीला के पर्दे पर किरदार के रूप में दिखते हैं, यह कोशिश इस लिए कि लम्बे समय के लिए रामलीला को कलाकार मिल सके और नयी पीढ़ी कुछ सीखे।
जोकर के आते, लोट-पोट हो जाते हैं, दर्शक
जोकर अपने किरदार में आते ही हजारों दर्शकों को हसां-हसाकर लोट-पोट कर देता हैं। जो दर्शकों को आकर्षण केन्द्र रहता हैं। विगत 40 वर्षो से जोकर का किरदार निभा रहे डॉ. भागचन्द्र जैन हैं।
दृश्य के हिसाब से बदलते हैं, पर्दे
रामलीला समिति प्राकृतिक पर्दे पर्दे के हिसाब से दृश्य बदलती हैं, जिसके लिए समिति के पास जंगल, महल, कुटी, नदी, झरने, गुफा, समुद्र, दरबार आदि के 50 पर्दे हैं। जैसा किरदार का दृश्य वैसे ही पर्दे गिराए जाते हैं, प्रत्येक वर्ष नये पर्दे समिति खरीदती हैं।
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रिहर्सल, तैयारी फिर मंच पर संवाद
किरदार एक माह पहले से रिहर्सल करते हैं, किरदार बार-बार संवाद को याद करते, जिससे भूले ना तब पर्दे पर अपना अभिनय दिखा पाते हैं। किरदारों का मेकअप करने में ज्यादा लगता हैं, रामलीला का अहिम हिस्सा किरदार हैं, किरदारों को तैयार करने में दो घंटे पहले से महनत की जाती हैं, उसी के हिसाब से कास्ट्यूम पहना कर तैयार होते हैं। विगत तीस वर्षो से निःशुल्क मेकअप करने वाले जानकी पेंटर बताते हैं, “रोल दो मिनट का हो या पांच मिनट का या खडा होने का, किरदार गेटअप में तो जायेगा! इसमें महनत तो बराबर होती हैं।”
1936 से रामलीला की नींव रखी गयी, तभी से स्थानीय कलाकार मंचन कर रहे हैं, इनकी कड़ी महनत से का परिणाम अनवरत रामलीला चल रही हैं! नगर, ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों दर्शक देखते हैं, रामलीला को महोत्सव के रूप में देखती हैं, लीला प्रारम्भ होने से पहले सुंदरकांड का पाठ, और समाप्ति के समय नगर की कन्याओं का भोज होता हैं।
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