लोकेश मंडल शुक्ला, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
रायबरेली। औषधीय फसल मेंथा की खेती रायबरेली के कई इलाकों के किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है, क्योंकि मेंथा ने किसानों की किस्मत बदल दी है। मेंथा की खेती सीजन की सारी फसलों में फायदे का सौदा साबित हो रही है।
लखनऊ-इलाहाबाद राज्यमार्ग पर स्थित बछरावां से चारों तरफ अधिकतर किसान मेंथा की खेती करते हैं। बछरावां बाजार में अपने बेटे के साथ सिंचाई के लिए डीज़ल लेने आए हुए किसान कुँवारे यादव (55 वर्ष) बताते हैं,“ दरसल मेंथा की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा वाली है। ये सबसे बड़ा कारण है कि किसानों का रुझान मेंथा की खेती की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।
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हालत यह है कि एक बीघे में करीब 30 से 35 हजार रुपए की फसल होती है। जबकि लागत प्रति बीघा आठ हजार रुपए आती है। पिपरमिंट की खेती तीन माह में तैयार हो जाती है। इसमें सबसे ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है इस लिए भी किसान मेंथा की खेती के प्रति ज्यादा जागरूक हो रहा है।” वहीं बछरावां ब्लॉक से 10 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में राघवपुर गाँव के किसान गोपाल तिवारी बताते हैं, “पिछले 4 साल से लागातार मेंथा की खेती कर रहा हूं।
इस खेती से बहुत मुनाफा होता है। किसान इसके तेल का भी व्यापार कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। ” श्यामजन कल्याण समिति के आयुर्वेद के वैद्य डॉ श्यामलाल यादव बताते हैं कि मेंथा के अर्क से दर्द निवारक मरहम, ठंडा तेल आदि तैयार किए जाते हैं जिसका उपयोग आयुर्वेद दवा के रूप में किया जाता है।
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जिला कृषि अधिकारी, सतीश कुमार ने बताया, मेंथा के पौधे का जड़ जनवरी में लगाया जाता है और मात्र 120 दिन में फसल कटने लायक हो जाती है। मई से इसकी कटनी शुरू हो जाती है। अप्रैल-मई में एक बार मेंथा फसल की कटाई होती है और जड़ खेतों में छोड़ दिया जाता है। पुन: पटवन व उर्वरक आदि डालने के साथ ही 3-4 माह में मेंथा की दूसरी फसल तैयार हो जाती है।”
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