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इलाहाबाद : गाँवों में नहीं मिल रहा रोजगार, पलायन को मजबूर लोग 

Swayam Project

ओपी सिंह परिहार, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

इलाहाबाद। ग्रामीण मज़दूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए यूपीए सरकार ने मनरेगा (महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना ) की शुरुआत की थी, जिसके तहत प्रत्येक पंजीकृत मज़दूर को साल में कम से कम 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराने का वादा किया गया था, लेकिन जिले में योजना की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। मनरेगा के तहत लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है, जिनको रोजगार मिल जाता है उनको मजदूरी नहीं मिल रही है। ऐसे लोग पलायन करने को मजबूर हैं।

उरुवा ब्लाक के परवा गाँव के कमलेश (41 वर्ष) मनरेगा में मजदूरी करते हैं। कमलेश कहते हैं, “गाँव के दर्ज़न भर मज़दूरों से मिट्टी भराई का काम कराया गया था, जिसे पूरा हुए छह माह से अधिक हो गए, लेकिन भुगतान नहीं हुआ। ऐसे में काम करने से क्या फायदा।” पिछले तीन महीने के दौरान मनरेगा के अंतर्गत जिले में कोई काम नहीं कराया गया, जिसकी वजह मज़दूरों की कमी बताई जा रही है। अप्रैल से अब तक जिले के 352 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत होने वाले कामों की शुरुआत भी नहीं हो सकी है।

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अपने उत्तरदायित्वों को कम करने के लिए विभागीय अधिकारियों ने मज़दूरों को खोजने की जिम्मेदारी ग्राम प्रधानों को सौंप दी है। हर गाँव के लिए अलग-अलग लक्ष्य निर्धारित कर दिए गए हैं, जिसके लिए ग्राम प्रधानों को मेहनत करनी पड़ रही है। नतीजा यह है की जिले के कुल 20 विकास खण्डों में केवल चाका ब्लॉक का लक्ष्य पूरा हो सका है, शेष ब्लाक खण्डों में लक्ष्य अधूरा पड़ा हुआ है। कुछ विकास खण्डों में तो 20 फीसदी भी काम नहीं हो सका है।

मनरेगा के अंतर्गत काम करने के बावजूद बेरोजगारी का दंश झेलने वाले मज़दूर रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन करने लगे हैं। मनरेगा मजदूर संदीप (32 वर्ष) कहते हैं, “200 दिन इंतज़ार काम पाने के लिए और इतने ही दिन मज़दूरी पाने के लिए। कार्यालय और ग्राम प्रधान के घर का चक्कर काटना पड़ता है।” परवा गाँव के ग्राम प्रधान प्रेम किशोर कहते हैं, “जो भी काम हुआ उसके भुगतान के लिए बड़े अधिकारियों को पत्र भेजा गया है, जैसे ही खाते में धन आएगा भुगतान कर दिया जाएगा।”

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श्रम विभाग के उप आयुक्त एके सिंह ने बताया मनरेगा के अंतर्गत कार्यों के लिए मज़दूरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। योजनान्तर्गत धन की कोई कमी नहीं है ग्राम प्रधान जरूरत से अधिक विकास कार्य की कार्ययोजना तैयार कर देते हैं, जिससे लक्ष्य अधूरा रह जा रहा है।

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