स्वयं प्रजेक्ट डेस्क
रायबरेली। अगर आज हम अपने दादा और नाना से पूछे कि वो अपने समय में खेती कैसे करते थे, तो उनका जवाब सुनकर हम हैरान रह जाएंगे या फिर वो हमारी सोच से बिलकुल परे जवाब देंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले कई दशकों से खेती में जबरदस्त बदलाव हुए हैं। मौसम के बदलाव और कृषि क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ते आधुनिकीकरण के कारण हमारे बुज़ुर्गों के समय की खेती और मौजूदा खेती में ज़मीन-आसमान का फर्क आ चुका है।
रायबरेली जिले में कुंदनगंज क्षेत्र के रहने वाले 59 वर्षीय संग्राम सिंह जिले में धान की खेती कर रहे हैं, सबसे बड़े किसानों में एक हैं। संग्राम धान की उन्नत खेती के लिए पंजाब ,बंगाल व मध्यप्रदेश जैसे जिलों से प्रशिक्षण भी ले चुके हैं। पुराने ज़माने की खेती के बारे में मुस्कुराते हुए संग्राम सिंह ने बताया, ‘’ पहले किसान मौसम को देखते हुए खेती नहीं करते थे।
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गाँव आने वाले पंडित की बात पर खेती होती थी। अगर पंडित यह कहता था कि इस साल बादल धोबी की पाली में बरसेंगे, तो किसान समझ लेते थे कि बरसात ज़्यादा होगी। अगर पंडित ने कह दिया कि इस साल माली की पाली में बादल हैं, तो बारिश कम होगी। इसे देखते हुए किसान फसल कम या ज़्यादा लेते थे।’’
अंतर्राष्ट्रीय कृषि विस्तार और पशु स्वास्थ्य पर बड़े स्तर पर काम कर रही संस्था एनिमल स्मार्ट द्वारा की गई शोध के अनुसार आज से करीब 200 वर्ष पहले 90 प्रतिशत लोग अपने परिवार के पालन के अनुसार ही खेती करते थे।
यानी कि उतना ही अनाज पैदा किया जाता था, जितने की अवश्यकता हो। लेकिन आज के किसान में पहले से कहीं अधिक व्यवहारिक परिवर्तन हो चुका है, अब किसान परिवार के साथ साथ अपनी आमदनी चलाने के लिए भी खेती कर रहे हैं।
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बछरावां ब्लॉक की इचौली ग्रामसभा के रहने रहने वाले ह्दय नारायण बाजपेई ( 70 वर्ष) सरकारी जूनियर हाईस्कूल के रिटायर्ड प्रधानाध्यापक हैं। वो पिछले पचास वर्षों से गेहूं- धान की खेती कर रहे हैं।
ह्दय नारायण बताते हैं, ‘’पहले न खाद होती थी और न कोई ट्रैक्टर इसलिए किसान बारिश का इंतज़ार न करके अमिला करता था। अमिला में किसान गेहूं की फसल कटने के तुरंत बाद भद्दर गर्मी में ही खेत की जुताई कर देता था, उसमें गोबर, भूसी डालकर पानी भर दिया जाता था। पानी सूख जाने के बाद खेत की फिर से जोता जाता था। यह प्रक्रिया बारिश से पहले कई बार की जाती थी।’’
उन्होंने आगे बताया कि गाँव में जिस किसान की धान की फसल अच्छी होती थी, वो बड़े गर्व से बताता था कि हमने दो से तीन बार अमिला किया था। इसलिए बढ़िया धान हुआ है। आज किसानों के पास इंटरनेट है इसलिए वो मौसम को देखते हुए खेती करते हैं।
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खेतों में इस्तेमाल किए जाने वाले कृषि यंत्रों ने भी खेती से तौर तरीकों में जबरदस्त बदलाव लाया है। पहले खेती से जुड़े सभी कार्य बैलों से व मुख्यरुप से हाथों की मदद से पूरे किए जाते थे, लेकिन पिछले दो दशकों में तेज़ी से विकसित हुए कृषि यंत्रों (ट्रैक्टर, कंबाइन मशीन) ने खेती में लोगों की मेहनत के साथ साथ समय भी बचाया है।
बदलते समय और मौसम चक्र के बारे में क्या कहते हैं जानकार
बदलते समय और मौसम चक्र को देखते हुए कृषि में हुए बदलाव के बारे में बनारस हिंदू विश्व विद्यालय के समाजशास्त्री डॉ. दिनेश कुमार बताते हैं,’’ पहले खेती भले ही कम की जाती हो ,लेकिन फसल की गुणवत्ता और बीजों के चुनाव में पहले की खेती और आज की खेती में बहुत फर्क आ चुका है।
उदाहरण के तौर आज की लौंकी खाने के बाद अक्सर लोगों का पेट दर्द करने लगता है। वहीं पहले की लौंकी खाने पर ऐसी कोई भी दिक्कत नहीं होती थी। क्योंकि आज की लौंकी का आकार बड़ा करने के लिए लोग इंजेक्शन का इस्तेमाल करने लगे हैं।
पशुपालन के क्षेत्र में भी आए बड़े बदलाव के बारे में समाजशास्त्री डॉ. दिनेश कुमार ने आगे बताया कि पहले साधारण जर्सी गाय भी 20 से 25 लीटर दूध देती थी, लेकिन आज गाँव में पशुपालक पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान करवाते हैं, इससे पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता घट रही है। यही बात पहले के आमों और आज के कल्मी आम पर भी लागू हो सकती है।
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