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औषधीय गुणों से भरपूर नीम की निबौलियां से हो रही हजारों एकड़ खेती 

kheti kisani

घरेलू औषधि से लेकर खेत में डालने वाली यूरिया तक में औषधीय पौधे नीम का इस्तेमाल किसान इस समय बखूबी कर रहे हैं। इससे किसानों की लागत तो कम हो ही रही है, साथ ही निबौलियों का सही इस्तेमाल हो रहा है।

मध्यप्रदेश में रहने वाले अभिषेक गर्ग (35 वर्ष) ने इन्हीं निबौलियों को न सिर्फ अपना व्यवसाय बनाया, बल्कि सैकड़ों आदिवासियों को रोजगार का जरिया दिया है। इस फैक्ट्री के लगने के बाद मध्यप्रदेश के हजारों किसान कई हेक्टेयर जमीन में निबौलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के धार जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में गुजरी गाँव हैं।

इस गाँव के निवासी अभिषेक गर्ग बताते हैं कि मैं पिछले 15 साल से खेती कर रहा हूँ। खेती करने के दौरान ये आभास हुआ कि जमीन की मिट्टी बहुत कठोर हो रही है और इसका असर फसल की पैदावार पर पड़ रहा है। वो आगे बताते हैं कि 2006 में मेरा ध्यान नीम की तरफ गया और तब मैंने नीम की फैक्ट्री लगाई।

तब किसानों को भी किया जागरूक

अभिषेक आगे बताते हैं “वर्ष 2006 से ही नीम की निबौलियों को एकत्रित करने के लिए मैंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। शुरुआती दिनों में थोड़ी सी मुश्किल आयी, लेकिन जैसे लोगों को पैसे मिलना शुरू हुए, वैसे हमारा काम आसान होने लगा।” अभिषेक पिछले दस वर्षों से प्राकृतिक ढंग से बागवानी के साथ 10 एकड़ जमीन में कई तरह की सब्जियां ले रहे हैं।

अभिषेक का कहना है अमरुद और आंवले की बागवानी में पत्ता गोभी, गेंदा, सेम, प्याज, बैगन, हल्दी जैसी तमाम मौसमी सब्जियां ली जा रही हैं। जिस समय बाजार में सब्जियां सस्ती दामों में बिकती हैं, उस समय हमारे खेत में लगी सब्जियों को अच्छा दाम मिल जाता है। दाम अच्छा मिलने के साथ ही इसकी लागत बहुत कम आती हैं। खाद के रूप में फसल में जो भी डाला जाता है ज्यादातर घर का सामान होता है या फिर बाजार में सस्ती दरों में उपलब्ध होता है।

कर रहे बूंद-बूंद सिंचाई

abhishek uses neem

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सिंचाई की नयी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अभिषेक गर्ग का कहना है ड्रिप विधी से सिंचाई करने से पानी की 90 प्रतिशत तक बचत होती है। ड्रिप सिंचाई की एक विशेष विधि है इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नालियों और एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है।

इसे ‘टपक सिंचाई’ या ‘बूँद-बूँद सिंचाई’ भी कहते हैं। टपक या बूंद-बूंद सिंचाई एक ऐसी सिंचाई विधि है जिसमें पानी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, कम अन्तराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। अभिषेक नीम के तेल साथ अमृत पानी का भी इस्तेमाल करते हैं इससे फसल को सूक्ष्म पोषक तत्व और मित्र कीटों का विकास होता है।

अमृत पानी बनाने की विधि

10 किलो देशी गाय का गोबर और गोमूत्र, एक किलो बेसन, एक दर्जन पके हुए मौसमी फल, जिस खेत में डालना हो उस खेत की मिट्टी एक ड्रम में पाँच से छह दिन के लिए भरकर ढककर रख देते हैं। 200 लीटर पानी में एक लीटर अमृत पानी का छिड़काव एक एकड़ खेत में हर 15 दिन पर करना है। अभिषेक बताते हैं, “हमारा काम यहीं पर समाप्त नहीं हुआ है। हम लोगों को समूह में नीम के तेल, खली, अमृत पानी के सही इस्तेमाल करने के बारे में जागरूक कर रहे हैं।

लोग अब अपने खेतों में इसका ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं। कई राज्यों से लोग आर्डर पर भी नीम का तेल और खली मंगाते हैं। नीम का तेल 150 रुपए लीटर और खली 1500 रुपेए कुंतल के हिसाब से बेचते हैं। अभिषेक की फैक्ट्री में सालभर में 50 टन नीम का तेल और 700 टन नीम पाउडर (खली) तैयार हो रही है। जिसका इस्तेमाल हजारों हेक्टेयर खेती में किया जा रहा है।

फसल में कीड़ा लगने से रोकती है नीम की खली

किसी भी फसल में कीड़ा लगा हो तो नीम की खली उसमें काफी फायदा करती है। सैकड़ों किसान खाद की जगह नीम की खली का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे लागत भी कम आ रही है और जैविक ढंग से उगाई गई फसल की कीमत भी ज्यादा मिलती है।

नीम कोटेड यूरिया

यूरिया की कालाबाजारी रोकने और नीम के फायदों को देखते हुए केंद्र सरकार ने नीम कोटेड यूरिया की शुरूआत की है। यूपी में गोरखपुर में एक खाद कारखाने का शिलान्यास करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नीम कोटेड यूरिया के फायदे गिनाए थे। नीम की मांग और बढ़ती खपत को देखते हुए सरकारी उर्रवक संस्था इफको अपने स्तर पर किसानों को नीम के पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रही है।

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