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अफसरों की लापरवाही का खामियाजा झेल रहे रेशम की खेेती करने वाले किसान 

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उपदेश कुमार, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

कानपुर। करोड़ों रुपए की लागत से क्षेत्र में स्थापित किए गए राजकीय रेशम फार्म का लाभ स्थानीय किसानों को नहीं मिल पा रहा है। रेशम विभाग के अफसरों की ढ़िलाई के कारण किसानों ने सालों बाद भी रेशम खेती को नहीं अपनाया है, जिससे जनपद रेशम उत्पादन में लगातार पिछड़ रहा है ।

बिल्हौर के राजेपुर और हिलालपुर गाँव में प्रदेश सरकार ने करीब 11.08 एकड़ भूमि पर रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राजकीय रेशम फार्म स्थापित किया है। लेकिन दोनों गाँव जहां यह रेशम फार्म संचालित हैं वहां के 10 किसान भी रेशम की खेती से नहीं जुड़े हैं। विभाग की लापरवाही से अभी क्षेत्रीय किसान आलू, गेहूं, धान, मक्का, सब्जी आदि प्रकार की पारंपरिक खेती-किसानी में लगे हुए हैं।

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ऐसे उत्पादित होता है रेशम

बिल्हौर को रेशम उत्पादन में अग्रणी बनाने के लिए कई एकड़ भूमि में अर्जुन, शहतूत के पेड़ लगवाए हैं। इन पेड़ों से पत्तियां लेकर कोई भी किसान अपने रेशम कीट पाल सकता है। पत्तियों को खाकर रेशम पैदा करने वाले कीटों को टसर कहते हैं। टसर कीट 30 से 35 दिन में 55 ग्राम कोया यानि एक रेशम का गुच्छा बनाता है, जिससे रेशम निकालकर बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाता है।

मक्का की खेती करने वाले राजेपुर गाँव के किसान सुनील कुमार प्रजापति (38वर्ष) ने बताया, “रेशम उत्पादन करना एक जटिल काम है। इसके लिए दिनभर एक न एक आदमी कीटों की और उनके भोजन की देख रेख के लिए मौके पर होना चाहिए। इसके बाद जो रेशम उत्पादित होता है उसकी बिक्री में फौरन किसान को धन भी नहीं मिल पाता।”

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