सिर्फ चार अध्यापकों के भरोसे चल रहा राजकीय इंटर कॉलेज    

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सिर्फ चार अध्यापकों के भरोसे चल रहा राजकीय इंटर कॉलेज    राजकीय इंटर कॉलेज में फिर कैसे पढ़े छात्र-छात्राएं।

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: सुनील कुमार मिश्रा

बरगढ़ (चित्रकूट)। हर वर्ष प्रदेश सरकार शिक्षा के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन शिक्षकों की कमी से राजकीय इंटर कालेज में पढ़ायी नहीं हो पा रही है। चित्रकूट जिले के बरगढ़ स्थित राजकीय इंटर कालेज केवल चार अध्यापकों के भरोसे चल रहा है। बरगढ़ जीआईसी में सृजित पद 30 में से कार्यरत 10 कर्मचारी में कालेज में दो प्रवक्ता और दो सहायक अध्यापक के अलावा दो चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी ही उपस्थित होते हैं। तीन अध्यापक अन्यत्र सम्बद्ध कर दिए गये हैं, एक लिपिक है जो 20 सितम्बर से बिना सूचना के गायब हैं।

इन विषयों के लिए नहीं है शिक्षक

दो प्रवक्ता हिन्दी और अर्थशास्त्र के हैं। बाकी प्रमुख विषय भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, इतिहास, संस्कृत, अंग्रेजी और कम्प्यूटर पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं हैं। प्रभारी प्रधानाचार्य कपूर चन्द्र शुक्ल बताते हैं, "शिक्षकों की कमी के लिए कई बार पत्राचार करने के बाद भी आज तक जवाब यही मिलता है कि आपकी मांग अग्रसारित कर दी गयी है। ऐसी दशा में शिक्षा की गुणवत्ता को कैसे बनाया जाए।"

अव्यवस्था भी कम नहीं

वो आगे कहते हैं, "अध्यापकों की कमी के चलते कक्षा नौ में 168 विद्यार्थियों को एक साथ बैठाया जाता है, ऐसे में शिक्षण कार्य कैसे होगा, समझा जा सकता है।" बदहाल शिक्षण व्यवस्था के साथ सुविधाओं का भी हाल बेहद खराब है। कालेज में पुस्तकालय, क्रीड़ा एवं मानसिक विकास के संसाधनों का पूर्णतः अभाव होने के साथ-साथ पेयजल का भी भारी संकट है। कालेज परिसर में एक बोर है, जो बन्द पडा है। दो हैण्डपम्पों के सहारे काम चलाया जाता है।

मगर मना कर देते हैं अधिकारी

शौचालय पानी के अभाव में बन्द पड़े हैं। ऐसे में छात्र/छात्राओं की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसमें खास कर छात्राओं को विशेष दिक्कत होती है। प्रधानाचार्य कपूर चन्द्र कहते हैं, "कालेज से लगे जलकल विभाग से कई बार जलापूर्ति के लिए कनेक्शन के लिए अनुरोध किया, लेकिन जमीन के विवाद (कालेज व जलकल) का कारण बताकर जलकल विभाग कनेक्शन देने से मना कर देते हैं।"

सिर्फ एक तिहाई ही पद भरे

प्रदेश के राजकीय कालेजों के लिए 6645 एलटी ग्रेड शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया दो साल पहले शुरू हुई थी। डेढ़ बरस तक तमाम प्रयास के बाद भी एक तिहाई ही पद भरे जा सके हैं, बाकी खाली पड़े हैं। 800 से अधिक राजकीय बालक-बालिका कालेजों में प्रधानाचार्य ही नहीं है। किसी तरह से कामकाज प्रभारियों के भरोसे चल रहा है। ऐसे ही एलटी ग्रेड व प्रवक्ता पद भी खाली चल रहे हैं, जो शिक्षक हैं भी, वह भी नियमित अंतराल पर सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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