गेहूं की खेती में अधिक उत्पादन और मुनाफे के लिए किसान अपना रहे जीरो टिलेज तकनीक

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
गेहूं की खेती में अधिक उत्पादन और मुनाफे के लिए किसान अपना रहे जीरो टिलेज तकनीकफोटो: गाँव कनेक्शन

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: अजय चौरसिया

सिद्धार्थनगर। ज्यादातर किसान गेहूं के कम उत्पादन और ज्यादा लागत की वजह से परेशान रहते हैं। कई बार गेहूं की बुवाई भी समय पर नहीं हो पाती है। ऐसे में किसानों का रुझान जीरो टिलेज तकनीक से बुवाई में बढ़ रहा है।

सिद्धार्थनगर के उसका ब्लॉक में उन्नत खेती पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था किसानों को जीरो टिलेज से बुवाई करा रही है, जिससे किसानों का फायदा हो रहा है। बसावनपुर गाँव के रमेश सिंह बताते हैं, ‘पहले धान की कटाई में देरी हो जाती तो गेहूं की बुवाई भी पिछड़ जाती थी, लेकिन अब जीरो टिलेज तकनीक बुवाई से गेहूं की बुवाई करने पर लागत भी कम लगती है और उत्पादन भी अधिक होता है।’

दस दिसंबर के बाद गेहूं की बुवाई के बाद गेहूं की बुवाई करने के बाद अच्छी लागत के बावजूद पैदावार में कमी आ जाती है। जीरो टिलेज तकनीक अपना कर किसान इस नुकसान से बच सकते हैं। यह तकनीक हर तरह की मिट्टी के लिए फायदेमंद है और इस से बारबार खेतों की जुताई पर प्रति हेक्टेयर डेढ़ से ढाई हजार रुपए की बचत भी हो जाती है।

उसी गाँव के राहुल गुप्ता कहते हैं, ‘धान की कटाई के बाद खेतों में काफी नमी रहने के बाद भी गेहूं की बुवाई करके फसल की अवधि में 20 से 25 दिन ज्यादा पा सकते हैं, इससे उपज में वृद्धि होती है।’

जीरो टिलेज तकनीक से फायदा

खेत में नमी रहने पर बीज का अंकुरण सही होता है। इसमें बीजों का अंकुरण गेहूं की परंपरागत खेती से दो-तीन दिन पहले ही हो जाता है। बीजों का अंकुरण होने पर उन का रंग पीला नहीं पड़ता है।

गेहूं की साधारण खेती के मुकाबले कम लागत व समय लगने और बेहतरीन व ज्यादा पैदावार होने की वजह से गेहूं की जीरो टिलेज तकनीक किसानों को रास आने लगी है। अब तो इस की मशीन किराए पर भी मिलने लगी है। लगातार मशीन चलाने पर एक दिन में आठ एकड़ खेत में बुवाई की जा सकती है। फसल में डाली गई खाद सीधे पौधों तक पहुंचती है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.