उन्नाव: बस अड्डा बना दिया पर सुविधाएं नहीं

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स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बांगरमऊ (उन्नाव)। हाईकोर्ट के आदेश पर क्षेत्र को बस स्टेशन की सौगात तो मिल गई, लेकिन क्षेत्रीय लोगों को अभी इस सुविधा का लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है। हाईकोर्ट के आदेश पर जल्दबाजी में बस स्टेशन के कुछ हिस्से का निर्माण कराने के साथ ही परिवहन निगम ने बसों का संचालन शुरू करा दिया।

हड़बड़ी में कराए गए कार्यों का खामियाजा यहां के यात्रियों को उठाना पड़ रहा है। बांगरमऊ कस्बे में रहने वाली गोमती (36 वर्ष) दिल्ली में पति के साथ रहकर नौकरी करती हैं। गोमती बताती हैं, “बस स्टेशन का निर्माण कस्बे से दूर हुआ है। कस्बे तक आने के लिए साधन भी नहीं मिलते। यहां हर समय सन्नाटा भी रहता है। ऐसे में अप्रिय घटना की भी संभावना बनी रहती है।”

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व्यवस्थाओं के नाम पर यात्रियों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। यात्री प्रतीक्षालय के नाम पर मात्र एक चबूतरा स्थित है, जबकि नगर एवं क्षेत्र के करीब डेढ़ हजार यात्री प्रतिदिन दिल्ली आदि शहरों के लिए यहां से यात्रा करते हैं। खासकर बारिश के मौसम में यात्रियों को पेड़ों की छांव का सहारा लेना पड़ रहा है। कार्यालय के नाम पर यहां मात्र एक कोठरी बनी हुई है, जिसमें स्टेशन अधीक्षक के रूप में एक वरिष्ठ बस चालक की तैनाती की गई है। हालांकि अभी अन्य स्टाफ तैनात नहीं किया गया है। अगर परिवहन विभाग की ओर से कर्मचारियों की तैनाती की भी जाती है तो उनके रुकने के लिए यहां किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं है। सबसे अधिक परेशानी उन यात्रियों को उठानी पड़ती है जो दूर शहरों से नौकरी कर वापस लौटते हैं। बांगरमऊ कस्बे में रहने वाले हरिशंकर (46 वर्ष) बताते हैं, “बस स्टेशन पर किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। न ही पानी मिलता है न ही छांव की व्यवस्था है।”

कैंटीन की भी व्यवस्था नहीं

नवनिर्मित बस स्टेशन पर यात्रियों एवं रोडवेज के चालक-परिचालकों के खानपान के लिए अभी तक कोई कैंटीन की व्यवस्था नहीं हो सकी है। यहां पर एकाध खोमचे-ठेलिया वाले कुछ मीठा-नमकीन जरूर बेचते नजर आए। लंबी दूरी की यात्रा करने वालों के लिए कैंटीन न होना एक बड़ी समस्या है।

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पानी के लिए तरसते यात्रीगण

बस स्टेशन परिसर में स्थित चबूतरे पर लगी सीमेंटेड चादरों को अराजकतत्वों ने तोड़ डाला। पेयजल के लिए बनाई गई टंकी भी टूट चुकी है। चबूतरे पर तो नए सिरे से सीमेंट की चादरें बिछाई जा रही हैं। पेयजल के लिए अभी तक कोई समुचित व्यवस्था नहीं की जा सकी है। यहां के बस स्टेशन पर पेयजल के लिए मात्र एक इंडिया मार्का हैंडपंप लगा है। शौचालय तो बने हैं, लेकिन सभी शौचालय कचरा और मिट्टी के ढेर से पटे पड़े हैं। शौचालयों में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। स्नानागार भी कूड़े-कचरे से भरे पड़े हैं। यहां पर अभी तक एक भी सफाई कर्मी की तैनाती नहीं की जा सकी है, जिससे बस अड्डा परिसर में भीषण गंदगी का अंबार लगा हुआ है।

मोमबत्ती की रोशनी से दूर होता अंधेरा

बस स्टेशन में बने कार्यालय में कर्मचारियों के बैठने के लिए एक अदद कुर्सी तक की व्यवस्था नहीं है। विद्युतीकरण न होने के कारण यहां पर रोशनी और पंखे का तो सवाल ही नहीं उठता। यहां पर तैनात किए गए कर्मचारी दिन में 12 बजे आते हैं और देर रात करीब 9 बजे यहां से चले जाते हैं। जंगलों के बीच में स्थापित बस स्टेशन में सूर्यास्त के बाद मोमबत्ती से रोशनी की जाती है। बरसाती दिनों में रात के समय जहरीले सांपों का खतरा बना रहता है। शाम को जरूरत पड़ने पर भी यहां यात्री यहां बस से नीचे नहीं उतरते हैं।

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कई शहरों के लिए बसें नहीं

नवनिर्मित बस स्टेशन में अभी दिल्ली जाने वाली करीब दो दर्जन बसें ही रुक रही हैं। हरदोई, शाहजहांपुर, बरेली, उन्नाव, कानपुर तथा लखनऊ जाने वाली रोडवेज बसें यहां तक नहीं आती हैं। इन शहरों को जाने वाले सैकड़ों यात्री यहां के बस स्टेशन तक पहुंच रहे हैं, लेकिन बसे न आने के कारण मायूस होकर लौट जाते हैं।

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