ग्रामीण बैंक में नही हैं पैसे, किसान खेती करें अब कैसे?
गाँव कनेक्शन 24 Nov 2016 9:01 PM GMT

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: सतीश कश्यप बाराबंकी
बाराबंकी। केन्द्र सरकार अपनी रिपोर्ट में नोटबंदी के बाद मचे हाहाकार के बाद अब स्थिति में काफी सुधार बता रही है, मगर केंद्र के दावों में कितनी सच्चाई है इसकी पड़ताल के लिए आज हमारी बाराबंकी गांव कनेक्शन की टीम ग्रामीण इलाकों में पहुंची। हमने जनपद के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर किसानों का हाल जानने का प्रयास किया। आज हम अपनी इस रिपोर्ट में उन्ही तीन क्षेत्रों के अलग-अलग हालात से आपको रूबरू करा रहे हैं।
पहली तस्वीर
सबसे पहले हम पहुंचे उत्तर प्रदेश सरकार के ग्राम विकास मंत्री अरविन्द सिंह गोप के विधानसभा क्षेत्र रामनगर में, जहाँ सुरुवारी की आर्यावर्त ग्रामीण बैंक में किसान कतारों में खड़ा होकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा है। किसानों के खेत बुवाई के लिए तैयार हैं, मगर बैंक से पैसा न मिल पाने से उनके खेतों की बुवाई में देरी हो रही है। मगर बैंकों से उन्हें पैसा मिल ही नहीं पा रहा। अगर मिलता भी है तो बमुश्किल हज़ार या पांच सौ। कारण ग्रामीण बैंकों में किसानों को देने के लिए पर्याप्त मात्रा में धनराशि न होना। सुरुवारी गाँव निवासी किसान जब्बार अली का बैंक में 90 हजार रुपए जमा होने के बाद उन्हें उनका पैसा फसलों की बुवाई के लिए नही मिल पा रहा है, वो गल्ला व्यापारी भी हैं। इसी गाँव के किसान अनिल कश्यप भी अपनी समस्या बताते हुए कहने लगे कि बैंक में सिर्फ बड़े लोगों को पैसा मिलता है, गरीब को मुश्किल में पैसे मिल पाते हैं।
सिरौलीकला गाँव के किसान ओम प्रकाश वर्मा भी बैंक की लाइन में पिछले तीन दिनों से लग रहे हैं, लेकिन पैसा नही मिल पा रहा है। उनके साथ खड़े किसान दूलमदास का भी यही हाल है। वो बताते हैं, साहब... बहुत परेशानी में है। भला हम कैसे करें फसलों की बुवायी। इसी कतार में तिलियानी गाँव की रहने वाली कुशुमलता अपनी शादी के लिए पैसे लेने अपनी माँ प्रेमादेवी के साथ बैंक आयी हुई हैं। कुशुमलता का आज तिलक जाना था, जिसके लिए उसके पिता प्रेमनारायण भी साथ मे थे। वहीं, शादी 30 नवम्बर को है। इसके लिए उसे पैसे चाहिए, मगर बैंक से जो रकम देने को कही जा रही है, वह जैसे ऊंट के मुंह में जीरा। मतलब ढाई लाख की जगह महज दो हज़ार रुपये। माँ बेटी दुहाई देती फिर रही है कि इतनी कम रकम से आखिर यह शादी कैसे संभव हो पाएगी। कारण फिर वही बैंकों में पर्याप्त पैसे न होना। 22 साल के सुभाष भी लाइन में लगे थे। उनकी शादी 3 दिसम्बर को है। उन्होंने बताया कि लगातार तीन दिन से बैंक के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन पैसे नही मिल पा रहे हैं। जलुहा मऊ निवासी अभय कुमार तिवारी मुम्बाई में गाड़ी चलाते हैं, वहां वो खाना बनाते वक्त बुरी तरह जल गये थे। वहां भी इलाज करवाया और अपने गांव आ गये, लेकिन यहां पैसे की परेशानी में बैंक के चक्कर लगा रहे हैं।
क्या कहते है शाखा प्रबंधक
बैंक के शाखा प्रबंधक सुमित सागर बताते हैं कि उनके पास जो पैसे उपलब्ध हैं, उसी में सबको निपटाना है। उन्होंने बताया कि तीन दिन बाद दो लाख रुपये बैंक को मिलते है। ऐसा भी नहीं है कि मानवता मर चुकी है। गाँव के लोग मदद तो करना चाहते हैं, मगर वह भी मजबूर हैं क्योंकि उन्हें भी नगदी बैंकों से नहीं मिल पा रही है।
दूसरी तस्वीर
बाराबंकी में किसानों की उपज का ख़ास कर मेंथा ऑयल का सही मूल्य कही मिलता है तो वह है यहाँ का मसौली क़स्बा। अगर हम यह कहें कि किसानों की सम्पन्नता का द्वार अगर किसी क्षेत्र में खुलता दिखाई देता है तो वह यही क्षेत्र है। लेकिन यहाँ की केनरा बैंक की शाखा के बाहर का नज़ारा देखते ही यहाँ की सच्चाई अपने आप पता चल जाती है। बैंक के बाहर किसानों की लंबी कतारों में होती धक्का-मुक्की और झड़प किसानों की बदहाली की दास्तान साफ़ दिखाई देती है। यहाँ के शाखा प्रबंधक नियाज किदवई का कहना है कि बैंक में पर्याप्त पैसे हैं। वही मसौली कस्बे की रहने वाली सन्नो वा साहिदा बानो लाइन में लगी थीं। उनका कहना है कि तीन दिन से दौड़ लगा रहे हैं, पैसे नही मिल पा रहे हैं। वहीं, मेढ़िया गाँव निवासी देवेन्द्र कुमार बताते हैं कि उनके खाते में 40 हजार रुपये हैं, लेकिन निकल नही पा रहे हैं। बैंक के बाहर का एटीएम भी बन्द मिला। मैनेजर का कहना है कि एटीएम मे तकनीकी समस्या आ गयी है।
तीसरी तस्वीर
अब हम आपको उस गाँव में लेकर चलते हैं, जहाँ आज भी यहाँ की पुरानी इमारतों में जमींदारी की झलक दिखाई देती है। यह गाँव है मसौली क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला बड़ागांव। यह गांव प्रसिद्द इस बात के लिए है कि इस गांव से कई लोग यहाँ से निकल कर देश-विदेश में अपनी ख्याति अर्जित करते हुए अपनी काबिलियत का लोहा मनवा चुके हैं। कुछ चुनिंदा नाम जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री रफ़ी अहमद किदवई, पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहसिना किदवई, पूर्व राज्यपाल एखलाक उर रहमान किदवई, पूर्व विधायक रिजवान उर रहमान किदवई और वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार के प्राविधिक शिक्षा मन्त्री फरीद महफूज किदवई इनमें शामिल हैं। मगर आज यह गाँव ख्याति अर्जित कर रहा है। नोटबंदी के बाद अपनी तंगहाली से निजात पाने के लिए अपनाएं गए नए तरीके के कारण। यहाँ के लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए वस्तु विनिमय को आधार बना रहे हैं। मतलब घर का अनाज देकर जरूरी चीजें खरीद रहे हैं। मगर ऐसे में उनकी मुश्किलें कम नहीं हो रही क्योंकि जिस अनाज को देकर अपनी जरूरत की चीजें वह ले तो रहे हैं, वह अनाज जा रहा है कौड़ियों के भाव जिसे देने को वह मजबूर भी है। कारण यहाँ कि बैंक में भी पर्याप्त धनराशि न हो पाना। इस पड़ताल से आप समझ जाएंगे क़ि केंद्र सरकार के दावों में कितनी सच्चाई है ।
This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).
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