छोटे तालाब में मछली पालन के साथ कर सकते हैं सिंघाड़े की खेती

Divendra SinghDivendra Singh   1 Dec 2018 6:52 AM GMT

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छोटे तालाब में मछली पालन के साथ कर सकते हैं सिंघाड़े की खेतीभूमिहीन सुघरा देवी ने मछली पालन के साथ लगाया सिंघाड़ा

शोहरतगढ़ (सिद्धार्थनगर)। सुघरा देवी कुछ साल पहले तक दूसरे खेतों में मजदूरी करती थीं, लेकिन आज वो अपने घर बाहर बने छोटे से गड्ढे (तालाब) की बदौलत तीन महीने में 70-80 हजार रुपये कमाती है।

नेपाल की तराई में बसे पूर्वांचल के सिद्धार्थनगर जिले में रोजगार एक बड़ी समस्या है। शोहरतगढ़ तहसील के खरकवार गांव की सुघरा देवी (50 वर्ष) के पास भी घर चलाने का जरिया मजदूरी ही थी। नाम मात्र की जमीन में खेती-बाड़ी हो नहीं पा रही थी, इसलिए पूरा परिवार मजदूरी करता था। लेकिन आज वो अपने घर के सामने बने तलाब में मछलियां पालती हैं और सीजन में सिंघाड़े की खेती भी करती हैं। मछली पालन के अतिरिक्त उन्हें सिघाड़े की खेती से सीजन के तीन-चार महीनों में 70-80 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।


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"पहले सिर्फ मजदूरी की एक जरिया था। लेकिन फिर कुछ लोग आए। उन्होंने कहा कि आप के घर के सामने जो गड्डा है इसमें मछलियां पालो। उन्होंने बीज भी दिलाने का वादा किया। तो हमने गड्ढे को साफ कर तालाब बनाया और मछली पालना शुरु कर दिया। घर के आदमी उन्हें आसानी बाजारों में बेच भी आते थे, "सुघरा देवी

सुघरा जैसी तमाम महिलाओं को आमदनी का ये जरिया जिले में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था शोहरतगढ़ एनवायरमेंटल सोसाइटी के माध्यम से मिला। संस्था ने बाद में महिलाओं को मछली पालन के साथ सिंघाड़े की खेती की भी ट्रेनिंग दी। इससे एक ही वक्त में दो काम होने से नका मुनाफा बढ़ गया।

आक्सफेम द्वारा वित्त पोषित योजना का संचालन हमारी संस्था कर रही है। इसमें जलवायु अनूकूलन खेती के बारे में बताया जाता है। साल 2015 में सुघरी देवी को प्रेरित किया गया। इसके बाद गड्ढे की सफाई कर उसमें सिंघाड़ा के साथ ही मछली का बीज भी डाला गया। इससे उनका अजीविका का साधन तो मिला ही साथ ही छोटे से तालाब का भी समुचित प्रयोग हो गया। धर्मेन्द्र, ब्लॉक समन्वयक- सोहरतगढ़ एनवायरमेंटल सोसाइटी

सिंघाड़े की खेती खासकर अब अधिक मुनाफे की खेती होती जा रही है, क्योंकि इसकी मांग बढ़ रही है। सिंघाड़े का आटा व्रत में खाया जाता है और उसके दाम भी बढ़िया मिलते हैं। सूखे सिघाड़े की कीमत 100 रूपए प्रति किलो से लेकर 120 रूपए तक भी पहुंच जाती है। इस बार तो सिघाड़ा मार्केट मे 150 रूपए तक बिका है। एक तरफ किसान जहां मछली का पालन कर रहे हैं वहीं सिघाड़े की खेती भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। किसान मछली पालन से कहीं ज्यादा सिघाड़े की खेती पर निर्भर हैं।

सुघरी देवी बताती हैं, "शुरुआत में संस्था की मदद से हमने मछली और सिंघाड़ा का बीज तालाब में लगाया था। इसमें मछली और सिंघाड़ा को बेचकर कुल 72000 की कमाई हुई थी, खर्च निकाल कर हमें लगभग 45000 का मुनाफा हो गया था। वो आगे कहती हैं, "पहले हम दूसरे के खेतों में काम करते थे अब हमारा खुद का काम है।" छोटी जोत या कम जमीन वाले किसानों के लिए इस तरह के व्यवसाय गरीबी दूर करने का जरिया बन सकते हैं।

   

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