पैदल फौज: असुविधाओं के बीच सभी को सुविधा देती है आशा बहू
Devanshu Mani Tiwari 29 Dec 2016 1:47 PM GMT

किशन कुमार- कम्यूनिटी जर्नलिस्ट
रायबरेली। रमा (35 वर्ष) ठंड लगने की वजह से एक सप्ताह बीमार रहीं। इस वजह से वह एक सप्ताह तक अपनी ड्यूटी भी ठीक से नहीं कर पाई है और उसके लिए डांट भी सुनी। रमा आशा है और बछरावां ब्लॉक के राजामऊ गाँव में तैनात है।
बीते दिनों सर्दी की रात में लगातार दो दिन रमा को गर्भवती महिलाओं को लेकर सीएचसी जाना पड़ा, जहां गर्भवती को तो दाखिला मिलते ही बिस्तर मिल जाता है लेकिन रमा को पूरी रात सर्दी में इधर-उधर बैठकर गुज़ारनी पड़ी। इस वजह से उसे सर्दी लगी और वह स्वयं अस्वस्थ हो गई क्योंकि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर आशा के लिए कोई आश्रय स्थल नहीं है। उसे मरीज को भर्ती कराने के बाद सारी रात इधर-उधर बैठकर ही काटनी होती है।
बाल विकास मंत्रालय के अनुसार भारत में लगभग 13 लाख आंगनबाड़ी केन्द्र हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लगभग एक लाख 87 हजार केन्द्र हैं। देशभर में कार्यरत तकरीबन 24 लाख आशाकर्मी तैनात हैं। समोधा ग्रामसभा में तैनात आशा कार्यकर्ती माया देवी (40 वर्ष) बताती हैं, “दूर-दराज के गाँव से जब मरीज़ को लाने में कोई दिक्कत नहीं होती है क्योंकि निशुल्क एम्बुलेंस मरीज को ले आती हैं पर मरीज को बेड दिलाने के बाद हमारे लिए कोई आश्रय स्थल सीएचएसी पर नहीं है। इतनी रात को वापस लौटने के लिए भी कोई सरकारी इंतजाम नहीं है। सारी रात सीएचसी पर ही भटकना पड़ता है।”
बछरावां के ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर (बीपीएम) धर्मेन्द्र सिंह के अनुसार सीएचसी में आशा के लिए आश्रय स्थल बहुत जरूरी है पर अभी तक पूरे जिले में भी किसी सीएचसी में ऐसा स्थल नहीं बनाया गया है।
ठाकुराइन खेड़ा की आशा कार्यकर्ती तुलसा देवी (48) कहती हैं, ‘’मरीज़ भर्ती होने के बाद आशा को पूछने वाला कोई नहीं है आशा चाहे मरे चाहे जिए। पूरी रात वहीं पड़े रहते हैं। सुबह अगर ड्रेस वाली साड़ी गन्दी दिखती है तो उसके लिए भी चार बातें सुननी पड़ती हैं। इतने बड़े अस्पताल में एक कमरा भी होता तब भी आशा रात को कुछ देर आराम तो कर सकती है।’’
This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).
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