पान की खेती से किसानों का घट रहा रुझान

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
पान की खेती से किसानों का घट रहा रुझानपानी की खेती।

प्रतापगढ़। आंवला की खेती के लिए मशहूर जिले के कई गाँवों में किसान पान की खेती करते हैं, लेकिन उनकी मेहनत का फायदा किसान नहीं, बल्कि व्यापारी ले जाते हैं। ऐसे में किसानों की अगली पीढ़ी पान की खेती नहीं करना चाहती है।

बनारसी पान के नाम से बेचते हैं ऊंचे दाम पर

प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. दूर बेलखरनाथ धाम विकासखंड के सरवरपुर और अमहरा के दर्जनों किसान पान की खेती करते हैं। जिसे यहां आढ़तिया (थोक व्यापारी) पका कर बनारसी पान के नाम से ऊंचे दाम पर बेचते हैं। सरवरपुर को बनारस की पान मंडी में सरोराबाद के नाम से जाना जाता हैं।

कोई सरकारी रेट ही नहीं

पान उत्पादन रामफेर चौरसिया (45 वर्ष) कहते हैं, "हमारी मेहनत का सही दाम कभी नहीं मिल पाता है। इसका न ही कोई सरकारी रेट है। आढ़ती मनमाने दाम पर हमारा पान खरीद कर स्वयं मुनाफा कमाते हैं।" वो आगे बताते हैं, “हम लोग तो किसी तरह पान की खेती कर ले रहे हैं, लेकिन हमारे लड़के इसकी खेती नहीं करना चाहते हैं।“

एक माह बाद फसल

पान के पौधों की रोपाई का काम फरवरी-मार्च में किया जाता है, जोकि तीन वर्ष तक फसल देता है। पान की अच्छी फसल के लिए उसकी सिंचाई का काम सबसे महत्वपूर्ण होता है। पान उत्पादन मिट्टी के मटके को अपने कंधो पर रखकर एक-एक पौधों की बारी-बारी से दूसरे हाथ की मदद के फव्वारा की शक्ल में प्रति दिन एक दिन में दो से तीन बार सिंचाई करते हैं। पान रोपाई के एक माह बाद फसल देना प्रारंभ कर देता है जो लगातार पांच माह तक तोड़ा जा सकता है। पान के पत्तों की तुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतराल पर की जाती है। दो बिस्वा के प्लाट में एक बार पान पत्ते की तुड़ाई में लगभग पांच सौ ढोली पान प्राप्त होता है। प्रदेश में पान की खेती मुख्य रूप से प्रतापगढ़, जौनपुर, सुल्तानपुर, रायबरेली व बनारस में की जाती है। प्रतापगढ़ में देशी लाल बंगली व ककेर पान का उत्पादन होता है

कर सकते हैं परवल की खेती

पान की खेती के साथ ही परवल की भी फसल आसानी से ली जा सकती है। पान के साथ इसका भी पौधा लगता है जो दो माह बाद फल देना प्रारंभ कर देता है। परवल का अपना अलग महत्व है। यह खुदरा बाजार में 80 से 100 रुपए तक बिक जाता है।

एक नए बरेजा (बांस की लकड़ी से बना हुआ एक बड़ा सा ढांचा जिसे चारों तरफ से बंद किया जाता है और उसके अन्दर पान की बेलें पनपती हैं) बनाने में एक से डेढ़ लाख रुपये का खर्चा आता है, जबकि एक बार की तोड़ाई में सिर्फ 40,000 से 50,000 रुपये की ही कमाई होती है। कभी-कभी तो इतना भी नहीं निकल पाता। ऐसे में किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है।
रामफेर चौरसिया, किसान

कारोबार में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी

भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, सन 2000 में देशभर में पान का कारोबार करीब 800 करोड़ का था। पिछले दशकों में इस कारोबार में 50% से भी ज़्यादा की कमी आई है। पानी का अभाव पान की खेती में आई इस भारी गिरावट की बड़ी वजहों में से है। जो खेती कभी महोबा के लोगों को अच्छा ख़ासा मुनाफा देती थी, आज वो घाटे का सौदा बन कर रह गई है। जो लोग खेती कर भी रहे हैं वो इसे किसी बड़े जुए की तरह मानते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.